For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लालसा की चोरी /लघुकथा

मैदान के किनारे सड़क के पार टपरी के बाहर वह माथे पर शिकन लिये बेचैन -सा बैठा है।अंदर बच्चा पिछले कई घंटों से रोये जा रहा था। पिछले कई दिनों से उसे बुखार है। सरकारी दवाई बेअसर थी। सामने पूरे मैदान में शामियाना लगा हुआ है। बैंड-बाजे की आवाज शोर बनकर कान को फाड़ने पर तुली हुई थी।
उसके घर में आज समस्त फसाद की जड़ ये बैंड-बाजा ही थी। पकवानों की सुगंध अमीर -गरीब का घर कहाँ देखती , बिना पूछे सीधे अंदर घुस आई।

पकवानों की सुगंध से मचलता खाने को तरसता बीमार बच्चा ,अब उसे कैसे समझाये? अजीब- सी विवशता ने घेर लिया था।असहाय पितृत्व , स्वयं के नपुंसक होने के बोध से वह घिर उठा।
"बापूss !" बच्चे की आवाज फिर से सीने को बेध गया। मीठी-सी ठुमकती आवाज आज कांटे बन ह्रदय को बींध रही थी।
" चुप कराओ इसे , अमीरों की गिद्ध -भोज में सेंध लगाना आसान नहीं है।इनके आगे जाने की हिम्मत जूटानी पड़ेगी।" बेमन से वह उठा और शामियाने की तरफ बढ़ गया।किसी तरह सबकी नजरे बचाता हुआ अन्दर प्रवेश कर गया। यहाँ से वहाँ दूर तक टेबलों पर सजे पकवानों पर नजर गई। एकटक निहारता रहा। "कितना सारा खाना ! "गुलाबी साफा लगाये एक बुजूर्ग को अपनी ओर देखते हुए देख वह अंदर से सहम उठा।
" अरे , यहाँ खड़े हो , सामने पड़ा जूठा दिखाई नहीं देता है ? मुँह ताकने के लिये तुमलोगों को नहीं रखा गया है"
उसकी नजर सामने लावारिश-सी पडी जूठे प्लेट पर पडी। पूरी थाली भरी हुई किसी ने जूठे में छोड़ दी थी।
" जी साहब , अभी उठाता हूूँ "वह लपक कर प्लेट उठा ,शामियाने के उस हिस्से में गया जहाँ लोगों की नजर ना पड़े।
बल्ली के किनारे कनात को एक हाथ से फाड़ते हुए वह झटके से निकल ,सबकी नजरों से बचते - बचाते तेज कदमों से अपनी टपरी में पहुँच गया। आँखों में चमक ऐसी मानो युद्ध जीत कर लौटा हो।
बेटा पिता के हाथ में पकवानों की थाली देख चिहुंक उठा, कि तभी उसकी दृष्टि टपरी के अंदर उसके पीछे आती टेंट वालों की जमात पर पड़ी। साथ में गुलाबी साफे वाला भी था।
" वह देखिये , प्लेट चुरा कर भागा है "
चुभता-सा आरोप , सुनते ही वह काँप उठा।
"यह जूठा मैं फेंक नहीं पाया साहब , मेरे बीमार बेटे को पकवान खाने की चाह थी।" घबराई-सी आवाज में मात्र इतना ही कह पाया।
गुलाबी साफे वाले की निगाहें लड़के पर जाकर टिक गयी। बच्चे की सहमी याचना भरी नज़रें , वह आत्मग्लानी से भर उठा। शर्म से उसकी नज़र नीचे झुक गई। "चोर तुम नहीं मैं हूँ " कहकर बाहर निकल गया।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 607

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on August 29, 2016 at 11:10pm
आभार आपका आदरणीया राहिला जी कथा पसंदगी के लिये।
Comment by kanta roy on August 29, 2016 at 11:09pm
आभार आपका आदरणीया कल्पना जी कथा पर प्रोत्साहन बढ़ाने के लिये।
Comment by kanta roy on August 29, 2016 at 11:08pm
अरे,वाह! आपसे कथा पर सराहना पाना तो मेरे लिये अवार्ड के समान है आदरणीय रवि जी। आप सबके सानिध्य में ही धीरे धीरे सीख पा रही हूँ। आभार आपको मेरा मनोबल बढ़ाने के लिये।
Comment by Rahila on August 20, 2016 at 12:07pm
बहुत सुन्दर रचना ।खूब बधाई आदरणीया कांता दीदी!सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:06am
चोर तुम नहीं हो मैं हूँ । वाह आदरणीया बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है ओकी हार्दिक बधाई ।
Comment by Ravi Prabhakar on August 17, 2016 at 8:10am

बहुत बढ़ीया आदरणीय कांता रॉय जी । लघुकथा पढ़ते समय लगा कि ये आम रूटीन सी लघुकथा हाेगी जिसमें गरीब को जूठा खाना उठाने के आराेप में मारा पिटा जाएगा आैर खाना फैंक दिया जाएगा, परन्‍तु जिस साकारात्‍मकता से आपने लघुकथा का अंत किया है वह सराहनीय है। सावधानीपूर्वक किए गए शब्‍द-चयन से पाठक जैसे जैसे कथा पठन करता है उसकी जिज्ञासा भी बढ़ती जाती है। उपमायुक्‍त भाषा 'आइसिंग ऑन द केक' का कार्य कर रही है। कथा का शीर्षक चयन और बेहतर हो सकता था। समग्रत; एक सफल व प्रभावशाली लघुकथा प्रेषण हेतु आपको असीम शुभकामनाएं निवेदित हैं। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
18 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
43 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
52 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 1 मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।वादे जो किए तू ने निभाने के लिए…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपने ठीक ध्यान दिलाया. ख़ुद के लिए ही है. यह त्रुटी इसलिए हुई कि मैंने पहले…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी, आपकी प्रस्तुति का आध्यात्मिक पहलू प्रशंसनीय है.  अलबत्ता, ’तू ख़ुद लिए…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी की विस्तृत विवेचना के बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. सो, प्रस्तुति के लिए हार्दिक…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत सुंदर यथार्थवादी सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई सर"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला बहुत खूबसूरत हुआ,  आदरणीय भाई,  नीलेश ' नूर! दूसरा शे'र भी कुछ कम नहीं…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service