आजादी के पावन पर्व पर.....
आजादी के पावन पर्व पर
तिरंगा हम फहराते हैं
मर मिटने को देश पे यारो
लाखों कसमें खाते हैं
करके चन्द पुष्प समर्पित
वीरों की तस्वीरों पर
बस शीश झुका कर उनके आगे
अपना फर्ज़ निभाते हैं
आजादी के पावन पर्व पर.....
एक तरफ जवानों को देखो
जो देश की लाज बचाते हैं
और सीमा पर लड़ते-लड़ते
एक यादगार बन जाते हैं
एक तरफ यहाँ देश के अंदर
भ्रष्टाचार का तांडव है
बन के मसीहा देश के अंदर
देश को लूट के खाते हैं
आजादी के पावन पर्व पर ....
हैं गलियाँ अब भी वही
जहाँ पर आजादी के नारे थे
जन्म भूमि के लिए जहाँ पर
बहे खून के धारे थे
आती नहीं आवाजें अब क्यूं
रंग दे बसंती चोले की
कुर्सी के लिए अब जीते हैं
कुर्सी के लिए मर जाते हैं
आजादी के पावन पर्व पर
तिरंगा हम फहराते हैं
मर मिटने को देश पे यारो
लाखों कसमें खाते हैं,
आजादी के पावन पर्व पर
तिरंगा हम फहराते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर आपकी आत्मीय प्रशंसा से सृजन और सृजनकर्ता उपकृत हुए । आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
आपकी भावना प्रधान रचनाएँ पठनीय होती हैं आदरणीय सुशीलसरना जी. इस रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ ..
एक बात अवश्य है, रचना के पूरा होते ही उसे तुरत पोस्ट करने के लिए आग्रही हो उठना आपके बाल-हृदय के उत्साह का सुन्दर उदाहरण है.
सादर
सुन्दर उदगार बार बार लगातार . सादर
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी प्रस्तुति को अपने स्नेहिल शब्दों से समृद्ध करने के लिया आपका हार्दिक आभार।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
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