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ग़ज़ल : गालों पर है रंग गुलाबी तौबा तौबा

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गालों पर है रंग गुलाबी तौबा तौबा ।
मतवाली की चाल शराबी तौबा तौबा ।।

कातिल शम्मा रात जला कर लूटे हस्ती।
नयी अदा में बात नबाबी तौबा तौबा ।।

अंदाजों से हुस्न बयां वो आधा है अब ।
हुई हया से आँख हिजाबी तौबा तौबा ।।

खंजर दिल पे मार गई है हक से यारों ।
पढ़ती है वो रोज तराबी तौबा तौबा ।।

खैरातों में इश्क बटा कब उस के दर पे ।
निकली वह भी खूब हिसाबी तौबा तौबा ।।

अंगड़ाई न ले तू खुले दरीचों से अब ।
यह कैसा कानून रूआबी तौबा तौबा ।।

मयखानों में रिन्द है प्यासे कह दो इनसे।
बदनामी के साथ खराबी तौबा तौबा ।।

अखबारो की आज कहानी चर्चा में है ।
नूरानी सी हूर शबाबी तौबा तौबा ।।

वह तालीम इश्क का लेकर क्या कर पाया।
शायद उस की अक्ल किताबी तौबा तौबा ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2016 at 4:53pm

आदरनीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको । कुछ सार्थक चर्चा भी हुआ है , आपकी गज़ल मे , खयाल कीजियेगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2016 at 11:04pm
जनाब तस्दीक साहब बहुत बहुत आभार । आपकी राय को सलाम ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2016 at 11:02pm
आदरणीय कबीर साहब नमन
मेरे जो भी प्रश्न हुये हैं वह मात्र जिज्ञासा ही थी । आप से बहुत कुछ सीखता हूँ । आप मेरी रचनाओ पर सदैव अपनी बेबाक राय अवश्य रखें । मैं आपका विशेष आभारी रहूंगा ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 6, 2016 at 8:09pm

जनाब नवीन  साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है  शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं  ---मोहतरम समर साहिब के मशवरे पर ध्यान दीजिये ,  अगर उर्दू के क़ाफिये इस्तेमाल करने है तो उसके दुरुस्त शब्दों के बारे में भी जानकारी करनी पड़ेगी ----आपने शेर 2  के  सानी  मिसरे में एक क़ाफ़िया "  नबाबी ""  इस्तेमाल किया है ---वह भी सही नहीं है  , सही शब्द है " नव्वाबी "  शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on September 6, 2016 at 5:48pm
भाई में तो आपको इसलिये सही शब्द बता देता हूँ कि ये मेरा फ़र्ज़ है, आम बोलचाल में "तरावीह"को 'तराबी'जाहिल लोग बोलते हैं,यहां तो हाल ये है कि लोग उर्दू भी सही नहीं बोलते,तो ये तो अरबी भाषा का शब्द है,इसी तरह सही शब्द है "रौब"जो बिगड़ कर'रुआब'हो गया है,और ज़ियादा बिगड़ कर रुआबों हो गया,आगे अल्लाह मालिक है ।
'रही'की तुक में 'सही'का क़ाफ़िया इस्तेमाल होते मैने तो अभी तक नहीं देखा,मैने आपसे पहले भी अर्ज़ किया था कि अध्यन करें,ये सीखने सिखाने का मंच है इसलिये में बता देता हूँ जो थोड़ा बहुत जानता हूँ,वरना इतना समय तो मेरे पास नहीं,अगर आप कहेंगे तो आइन्दा में आपको कुछ नहीं बताऊंगा,आप आम बोलचाल के शब्दों में ही शाइरी करते रहिये मुझे क्या फर्क पड़ता है,अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप कुछ सीखने के लिये तैयार भी हैं,या में आपकी ग़ज़लों की रस्मी तारीफ़ कर गुज़र जाया करूँ ?
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2016 at 3:59pm
रुआब शब्द आम बोलचाल में देखा गया है सर जी । विशेषण में रुआबी न हो कर क्या शब्द बनेगा । कृपया सुझाव दान करें ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2016 at 3:52pm
आदरणीय कबीर सर सादर नमन

चिर परिचित शब्द तराबी ही सुनता आया हूँ । बहर शब्द का शुद्ध बह्र लिखते है वजन को शुद्ध वज़्न लिखते हैं इसी तरह से अनेक शब्द ऐसे आते हैं जिन्हें लोग आम तौर पर ग़ज़लों में प्रयोग कर रहे हैं । जैसे रही और सही की काफियाबन्दी आम बात हो गयी है । जबकि सही का शुद्ध शब्द सहीह है ।
बहुत असमंजस की स्थिति हो जाती है जब आम बोलचाल के शब्द को फ़ारसी के शुद्धतम उच्चारण में उलझा पाता हूँ ।
यद्यपि मेरा शब्दों पर कोई विशेषाधिकार नही है । अल्पज्ञ हूँ । यह सब मैं अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए जानना चाहता हूँ। रुआबी का सही शब्द क्या है इसे भी बताने का कष्ट करे ।। सादर
Comment by Samar kabeer on September 6, 2016 at 3:15pm
जनाब नवीन मणि जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"पढ़ती है वो रोज तराबी तौबा तौबा"

इस शैर में क़ाफ़िया दोष है,सही शब्द है "तरावीह"

"यह कैसा कानून रूआबी तौबा तौबा"

इस शैर में भी क़ाफ़िया दोष है "रुआबी" कोई शब्द ही नहीं है,देख लीजियेगा ।

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