2221 21122 2222
गालों पर है रंग गुलाबी तौबा तौबा ।
मतवाली की चाल शराबी तौबा तौबा ।।
कातिल शम्मा रात जला कर लूटे हस्ती।
नयी अदा में बात नबाबी तौबा तौबा ।।
अंदाजों से हुस्न बयां वो आधा है अब ।
हुई हया से आँख हिजाबी तौबा तौबा ।।
खंजर दिल पे मार गई है हक से यारों ।
पढ़ती है वो रोज तराबी तौबा तौबा ।।
खैरातों में इश्क बटा कब उस के दर पे ।
निकली वह भी खूब हिसाबी तौबा तौबा ।।
अंगड़ाई न ले तू खुले दरीचों से अब ।
यह कैसा कानून रूआबी तौबा तौबा ।।
मयखानों में रिन्द है प्यासे कह दो इनसे।
बदनामी के साथ खराबी तौबा तौबा ।।
अखबारो की आज कहानी चर्चा में है ।
नूरानी सी हूर शबाबी तौबा तौबा ।।
वह तालीम इश्क का लेकर क्या कर पाया।
शायद उस की अक्ल किताबी तौबा तौबा ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरनीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको । कुछ सार्थक चर्चा भी हुआ है , आपकी गज़ल मे , खयाल कीजियेगा ।
जनाब नवीन साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---मोहतरम समर साहिब के मशवरे पर ध्यान दीजिये , अगर उर्दू के क़ाफिये इस्तेमाल करने है तो उसके दुरुस्त शब्दों के बारे में भी जानकारी करनी पड़ेगी ----आपने शेर 2 के सानी मिसरे में एक क़ाफ़िया " नबाबी "" इस्तेमाल किया है ---वह भी सही नहीं है , सही शब्द है " नव्वाबी " शुक्रिया
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