दोहे (एक प्रयास )
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नैनन में ममता लिए,होंठों पर मुस्कान।
भिड़ जाए सन्सार से , जातक पे कुर्बान।।
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अञ्चल में माँ सींचती,अमृत का भण्डार।
ऋषि हो चाहे देवता ,सीस झुकाते द्वार।।
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संघर्षों से डरू नहीं ,माँ तुम हो जो पास ।
अंधेरे जब बढ़ गए,पाई तुमसे आस ।।
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माता तुम जो बोलती, वहि मेरा है कर्म।
पाया भाव यहि तुमसे , जीवित रखना धर्म।।
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कान्हा हो सुत रूप में ,चाहे हो बलराम।
मात यसोदा रूप है, नित्ये करो प्रणाम ।।
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"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण ' जी, मेरे सृजन की सराहना और सुझाव के लिए हार्दिक अभिनन्दन आपका, आपके सुझाव अनुसार संशोधन किया है
बाकि के शब्द डरूं, वही, यही बदलने से मात्रा क्रम में अटक रहि हूँ
आदरणीय अशोक कुमार जी , मेरे अल्पज्ञान के मुताबिक संशोधन किया है साथ/ साथ की जगह पास / आस। ...और नित्य का नित्ये
बाकि के शब्द ऋषी, डरू, वहि, यहि.// ऋषि , डरूं, वही, यही बदलने से मात्रा क्रम में अटक रहि हूँ
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी नमस्कार , आपने मेरे सृजन को पढ़ा सराहा उसके लिए हार्दिक अभिनन्दन आपका
आदरणीय अशोक कुमार जी नमस्कार , आपने मेरे दोहों को पढ़ा सराहा उसके लिए मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ ...आपने जिस ओर ध्यान दिलाया है उसका मैं आगे से जरूर ख्याल रखूंगी ..आभार आपका ..
आदरणीया अलका चंगा जी सादर, दोहों पर सुंदर प्रयास हुआ है. सतत प्रयास से अवश्य ही सुधार भी होगा. इस प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.
कुछ शब्द जो सही रूप में नहीं हैं - ऋषी, डरू, वहि, यहि.// ऋषि , डरूं, वही, यही.
दोहों में तुकांत प्रयोग होता है इस दृष्टि से साथ /साथ. सही नहीं है.
पाया भाव यहि तुमसे.......दोहे में विषम चरण का अंत लघु गुरु अथवा लघु -लघु -लघु /नगण से ही श्रेष्ठ है.
नित्य करो प्रणाम.........यहाँ एक मात्रा कम रह गई है.
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