हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।
देवतुल्य पूजन करो, मात-पिता सम मान।।
मात-पिता सम मान, करो इसकी सब सेवा।
मिले मधुर परिणाम, कि जैसे फल औ मेवा।।
कहे पवन ये बात, सुहागन की ये बिन्दी।
इतराता साहित्य, अगर भाषा हो हिन्दी।१।
दुर्दिन जो हैं दिख रहे, इनके कारण कौन।
सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।।
सब ठाढ़े हैं मौन, बांध हाथों को अपने।
चमत्कार की आस, देखते दिन में सपने।।
सुनो पवन की बात, प्रीत ना होती उर बिन।
होती सच्ची चाह, न आते इसके दुर्दिन।२।
सरकारी अनुदान में, हिन्दी को बइठाय।
अँग्रेजी प्लानिंग करें, ग्रोथ कहाँ से आय।।
ग्रोथ कहाँ से आय, ट्रबल में हिंदी अपनी।
मदर टन्ग असहाय, यही बस माला जपनी।।
कहे पवन कविराय, करें ये बस मक्कारी।
हिंदी कोसे भाग्य, देख फाइल सरकारी।३।
जब सोंचे हिन्दी सभी, हिन्दी में हो काम।
हिन्दी में ही बात हो, भली करेंगे राम।।
भली करेंगे राम, बढ़ेगी हिंदी तबही।
हिंदी में हर लेख, करो ये निश्चय अबही।।
हिंदी कोमल जीव, विदेशी मिल सब नोंचे।
होगी ये बलवान, सभी मिलकर जब सोंचे।४।
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आद. अशोक जी,,,कुण्डलिया छन्द को पसंद करने के लिये हृदय तल से आभार
आदरणीय डॉ. पवन मिश्र जी सादर, हिंदी पर रचे सभी कुण्डलिया छंद उत्तम हुए हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
आदरणीय पवन जी, आपकी कुण्डलिया रचनाओं से मेरा पहली बार सामना हो रहा है. कहना न होगा शिल्पपक्ष पर आपकी पकड़ देख कर मन मुग्ध है. यह अवश्य है, रचना-यात्रा अब शुरु हो रही है. आप पंक्तियों की तार्किकता और उसके भावपक्ष पर अपना ध्यान केन्द्रित करें. क्योंकि छन्द-शिल्प के प्रति आप अत्यंत आश्वस्त दिख रहे प्रतीत हो रहे हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकमनाएँ और बधाइयाँ, आदरणीय
शुभेच्छाएँ
वाह्ह्ह्हह......बहुत सुन्दर कुंडलिया छंद पवन जी ..बहुत बहुत बधाई
आद. राम शिरोमणि जी, मीना पाठक जी, जनाब समर साहब, राजेश कुमारी जी,,,आप सबका हृदय तल से आभार। परिष्करण हेतु सुझावों की अपेक्षा सँग पुनः आभार
वाह्ह्ह्हह वाह्ह्ह्ह हिन्दी के सम्मान में शिल्पबद्ध सार्थक कुण्डलियाँ लिखी हैं आद० डॉ० पवन जी दिल से बहुत बहुत बधाई लीजिये |
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