ग़ालिब साहब की ज़मीन पर एक प्रयास
तब अलग थी, अब जवानी और है
2122 2122 212 --
शक्ल में जिनकी कहानी और है
क्या उन्होनें मन मे ठानी और है
लफ़्ज़ तो वो ही पुराना है मगर
आज फिर क्यों निकला मअनी और है
हाथ में पत्थर है, लब खंज़र हुये
तब अलग थी, अब जवानी और है
है समंदर की सतह पर यूँ सुकूत
पर दबी अब सरगिरानी और है
साजिशें सारी पस ए परदा हुईं
पर अयाँ जो है ज़बानी,.. और है
बात सारी दोस्ती की कर रहे
पर अमल की कुछ बयानी और है
अब हक़ीकत है यहाँ बदली हुई
अब उधर की भी कहानी और है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
मआनी का एक वचन क्या होगा ? या फिर कुछ और सोचा जाये बताइयेगा ।
हक़ बयानी अगर सही है तो मुझे स्वीकार है , आ. रवि भाई से मैने भी प्रश्न किया है , देखिये क्या जवाब आता है ।
अदरनीय रवि भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
//काफिया कही दबता हुआ सा लग रहा है // आदरणीय , गलत है कहें तो सुधार कर सकता हूँ , आपकी इन शंका का जवाब क्या होना चाहिये मै समझ नही पा रहा हूँ । आपके पास कोई हल हो तो अवश्य बतायें ।
आदरणीय बृजेश भाई , गज़ल की सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।
हाथ में पत्थर है, लब खंज़र हुये
तब अलग थी, अब जवानी और है.....वाहह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीय आशीष भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आ० अनुज , बहुत बढ़िया गजल . आपको बधाई . सादर
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