2212 2212 2212
ढलती सुहानी शाम है आ जाइये
हर सू तुम्हारा नाम है आ जाइये
ये वादियाँ ये खुश्बुएं हैरान हैं
हर फूल पे इल्जाम है आ जाइये
कैसी चुभन है ये दिले नासाज़ की
दिल टूटना तो आम है आ जाइये
उजड़ा हुआ है मुद्दतों से आशियाँ
सूनी तभी से बाम है आ जाइये
नासूर बन जो रूह पे आयद हुआ
उस ज़ख्म का पैगाम है आ जाइये
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
©बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
हार्दिक अभिनंदन एवं आभार आदरणिया Alka Changa जी
हार्दिक आभार आदरणीय Ravi Shukla जी आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी के कहे अनुसार सुधार किया है
आपके अमूल्य समय एवं सुंदर शब्दों के लिए ह्रदय से अभारी हूँ आदरणिया KALPANA BHATT जी
आपके अमूल्य समय के लिए ह्रदय से अभारी हूँ आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी
सार्थक समीक्षा के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी सुधार किया है....
उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार Manoj kumar Ahsaas जी
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनंदन एवं आभार आदरणीय PRAMOD SRIVASTAVA जी
बहुत बढि़या ग़ज़ल हुई है आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी। हार्दिक बधाई ।
आदरणीय ब्रजेश जी बढि़या गजल कही है बधाई । आदरणीय शिज्जु की बात से सहमत है हम भी ।
बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी | हार्दिक बधाई |
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