2212 2212 2212
ढलती सुहानी शाम है आ जाइये
हर सू तुम्हारा नाम है आ जाइये
ये वादियाँ ये खुश्बुएं हैरान हैं
हर फूल पे इल्जाम है आ जाइये
कैसी चुभन है ये दिले नासाज़ की
दिल टूटना तो आम है आ जाइये
उजड़ा हुआ है मुद्दतों से आशियाँ
सूनी तभी से बाम है आ जाइये
नासूर बन जो रूह पे आयद हुआ
उस ज़ख्म का पैगाम है आ जाइये
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
©बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय बृजेश जी तीसरे शे'र में आपने फिक्र को फिकर लिखा उसके अनुसार सुधार कर लीजिएगा
सूनी तभी से बाम है आ जाइए ,इस मधुर आह्वान सिक्त गजल के लिए बधाई ।
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