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ग़ज़ल ....हर सू तुम्हारा नाम है आ जाइये

2212       2212      2212

ढलती सुहानी शाम है आ जाइये 
हर सू तुम्हारा नाम है आ जाइये

ये वादियाँ ये खुश्बुएं हैरान हैं 
हर फूल पे इल्जाम है आ जाइये

कैसी चुभन है ये दिले नासाज़ की
दिल टूटना तो आम है आ जाइये

उजड़ा हुआ है मुद्दतों से आशियाँ
सूनी तभी से बाम है आ जाइये

नासूर बन जो रूह पे आयद हुआ 
उस ज़ख्म का पैगाम है आ जाइये

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

©बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 764

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 3, 2016 at 4:59pm
बहुत खूब आदरणीय भाई बृजेश कुमार ब्रज जी।बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 3, 2016 at 4:47pm

आदरणीय बृजेश जी तीसरे शे'र में आपने फिक्र को फिकर लिखा उसके अनुसार सुधार कर लीजिएगा

Comment by मनोज अहसास on October 3, 2016 at 4:18pm
bahut khub
waah
Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on October 3, 2016 at 12:34pm

सूनी तभी से बाम है आ जाइए ,इस  मधुर आह्वान सिक्त गजल के लिए बधाई ।

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