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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ४७

जो है दिल को शिकायत न हो ज़ेरेफुगाँ क्यों

न हो कहने का हक़ कुछ तो देते हो जुबां क्यों  

 

मेरी खानाख़राबी सुबूतेआशिक़ी है

जो हो मजनूं तुम्हारा हो उसका आशियाँ क्यों

 

यूँ कारेआशिक़ी से है आती बू-ए-साज़िश

अदू जो हैं हमारे वो तेरे पासबाँ क्यों

 

मकीनेदिलबिरिश्ता-ओ-दश्तेगमनशीं था

वफ़ातेकैस पे फिर न हो ख़ुश गुलसितां क्यों

 

जो मुझसे निस्बतों की सभी बातें हैं झूठीं

सुनाते हो मुझे तुम तुम्हारी दास्ताँ क्यों

 

अगर जो था वो बेरुख़ तो मुड़कर देखता क्यों

शिकारी अपने पीछे कोई छोड़े निशाँ क्यों

 

वो हिन्दू नाम के हैं जो करते हैं तफ़रक़ा

जो करते खूंख़राबा वो होवे मुसल्माँ क्यों

 

~ राज़ नवादवी

०५/१०/२०१६

 

ज़ेरेफुगाँ- आर्तनाद करता हुआ; खानाख़राबी- इश्क़ में घर-बार का बर्बाद हो जाना; सुबूतेआशिक़ी- प्रेम का साक्ष्य; कारेआशिक़ी से- प्रेमकर्म से; बू-ए-साज़िश- षड़यंत्र की गंध; अदू- दुश्मन; पासबाँ- हिफाज़त करने वाले; मकीनेदिलबिरिश्ता-ओ-दश्तेगमनशीं था- दग्ध हृदय एवं दुःखमें डूबे हुए रेगिस्तान का निवासी था; वफ़ातेकैस- कैस/मजनू की मौत; गुलसितां- उद्यान/ उपवन; निस्बतों की बातें- संबंधों की बातें; दास्ताँ- कहानी, आपबीती; तफ़रक़ा- भेदभाव; खूंख़राबा- खून ख़राबा

 

 

 

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Comment by राज़ नवादवी on October 10, 2016 at 11:43pm

शुक्रिया आदरणीया राजेश जी. आपका हृदय से आभार. 

Comment by राज़ नवादवी on October 10, 2016 at 11:42pm

शुक्रिया अपर्णा जी. दिल से आभार. 


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Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 6:06pm

आद० राज़ साहब ,बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ रही हूँ काफी दिनों बाद आपको यहाँ देखा अच्छा लगा |बहुत सुन्दर कलाम कहा  है आपने दिल से बधाई लीजिये |

Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 5:05pm
सुंदर रचना है पर आखिरी की दो पंक्तियों में हिन्दू-मुसलमां का जिक्र एक रूहानी इश्क को दर्शाती रचना में जमा नहीं ।
Comment by राज़ नवादवी on October 9, 2016 at 10:41pm

हृदय से आभार सुरेन्द्रनाथ जी !

Comment by नाथ सोनांचली on October 9, 2016 at 12:20am
बधाई राज जी
Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2016 at 8:36pm

आदरणीय समर कबीर साहेब, आदाब और दिल से  आभार. 

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2016 at 8:35pm

आदरणीय व्यास जी, आपका तहेदिल से आभार 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 8, 2016 at 7:57pm
आदरणीय राज साहब इस सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Samar kabeer on October 8, 2016 at 5:20pm
जनाब राज़ साहिब आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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