जो है दिल को शिकायत न हो ज़ेरेफुगाँ क्यों
न हो कहने का हक़ कुछ तो देते हो जुबां क्यों
मेरी खानाख़राबी सुबूतेआशिक़ी है
जो हो मजनूं तुम्हारा हो उसका आशियाँ क्यों
यूँ कारेआशिक़ी से है आती बू-ए-साज़िश
अदू जो हैं हमारे वो तेरे पासबाँ क्यों
मकीनेदिलबिरिश्ता-ओ-दश्तेगमनशीं था
वफ़ातेकैस पे फिर न हो ख़ुश गुलसितां क्यों
जो मुझसे निस्बतों की सभी बातें हैं झूठीं
सुनाते हो मुझे तुम तुम्हारी दास्ताँ क्यों
अगर जो था वो बेरुख़ तो मुड़कर देखता क्यों
शिकारी अपने पीछे कोई छोड़े निशाँ क्यों
वो हिन्दू नाम के हैं जो करते हैं तफ़रक़ा
जो करते खूंख़राबा वो होवे मुसल्माँ क्यों
~ राज़ नवादवी
०५/१०/२०१६
ज़ेरेफुगाँ- आर्तनाद करता हुआ; खानाख़राबी- इश्क़ में घर-बार का बर्बाद हो जाना; सुबूतेआशिक़ी- प्रेम का साक्ष्य; कारेआशिक़ी से- प्रेमकर्म से; बू-ए-साज़िश- षड़यंत्र की गंध; अदू- दुश्मन; पासबाँ- हिफाज़त करने वाले; मकीनेदिलबिरिश्ता-ओ-दश्तेगमनशीं था- दग्ध हृदय एवं दुःखमें डूबे हुए रेगिस्तान का निवासी था; वफ़ातेकैस- कैस/मजनू की मौत; गुलसितां- उद्यान/ उपवन; निस्बतों की बातें- संबंधों की बातें; दास्ताँ- कहानी, आपबीती; तफ़रक़ा- भेदभाव; खूंख़राबा- खून ख़राबा
Comment
शुक्रिया आदरणीया राजेश जी. आपका हृदय से आभार.
शुक्रिया अपर्णा जी. दिल से आभार.
आद० राज़ साहब ,बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ रही हूँ काफी दिनों बाद आपको यहाँ देखा अच्छा लगा |बहुत सुन्दर कलाम कहा है आपने दिल से बधाई लीजिये |
हृदय से आभार सुरेन्द्रनाथ जी !
आदरणीय समर कबीर साहेब, आदाब और दिल से आभार.
आदरणीय व्यास जी, आपका तहेदिल से आभार
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