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अनमोल पल थे हाथ से सारे फिसल गये
अपनों ने मुंह को फेर लिया दिन बदल गये।।
कुछ ख्वाब छूटे कुछ हुए पूरे, हुआ सफर
यादो के साथ साल महीने निकल गये।।
शरमा के मुस्कुरा के जो उनकी नजर झुकी
मदहोश हुस्न ने किया बस दिल मचल गये।।
बचपन के मस्त दिन भी हुआ करते थे कभी
बस्तो के बोझ आज वो बचपन कुचल गये।।
ओढे लिबास सादगी का भ्रष्ट तंत्र में
नेता गरीब के भी निवाले निगल गये।।
करते है बेजुबान को वो क़त्ल इस तरह
वहशत को देख कर ये मनाज़िर दहल गये।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
"नेता गरीब के भी निवाले निगल गये"
बहुत सुंदर कटाक्ष, एकदम पैनी। तहे दिल से बधाई स्वीकार करें।
वाह्ह्ह्ह बहुत सूंदर ग़ज़ल है आद० सुरेन्द्र नाथ जी हार्दिक बधाई।
वाह्ह्ह्ह बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने आद० सुरेन्द्र नाथ जी हार्दिक बधाई
गज़ल अच्छी बनी है। मुबारक ।
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