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कविता :"विजयादशमी " - अर्पणा शर्मा, भोपाल

हम सब कठपुतलें हैं,
करते परंपरागत दहन,
रावण के पुतलों का,
मनाते पर्व विजय का,
पर छुपे हुए रावण,
हर जगह फैलें हैं,
ऊपर से उल्लासित हम,
भीतर से त्रस्त और खोखले हैं,
आतंक,दुराचार,विभीषिकाओं के,
भीषण दौर इस विश्व में,
सभी धर्मों, सभ्यताओं,
और समाजों ने झेले हैं,
छुपी हुई दुराचारी,
अहंकारी मनोवृत्ति के,
आतंक और भ्रष्टाचार के,
युद्ध और विनाश के,
अशिक्षा और दरिद्रता के,
इन रावणों का दहन करने,
हे राम तुम्हें,
फिर अवतरित होना होगा,
असत्य पर सत्य की,
बुराई पर अच्छाई की,
परंपरा को विजय की,
स्थापित पुनः करना होगा,
सही अर्थों में तभी,
यह विजय पर्व मनेगा...!!"
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 11, 2016 at 3:51pm
आ अर्पणाजी सुंदर संदेश प्रद रचना को नमन।
Comment by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 3:45pm
धन्यवाद श्रीमान् सुरेन्द्र नाथ सिंह जी
Comment by नाथ सोनांचली on October 11, 2016 at 3:18pm
बहुत खुबसूरत प्यारी रचना, हार्दिक शुभकामना के साथ बधाई स्वीकार करें।
Comment by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 1:21pm
आदरणीय सुरेश कुमार ' कल्याण' जी- कविता पसंद करने के लिए बहुत आभार और विजयादशमी की सपरिवार शुभकामनाएँ ।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 11, 2016 at 11:18am
आदरणीया अर्पणा शर्मा जी विजय दशमी के उपलक्ष्य में रचित इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।

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