नये सरकारी आदेश की प्रति बाबूराम के कार्यालय में पहुँच गयी थी. इस आदेश के अनुसार किसी भी विकलांग को लूला-लंगड़ा, भैंगा-काणा या गूंगा-बहरा आदि कहना दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया था. सरकार ने यह व्यवस्था दी है कि यदि आवश्यक हुआ तो विकलांग के लिए दिव्यांग शब्द का प्रयोग किया जाए. बड़े साहब ने मीटिंग बुला कर उस सरकारी आदेश को न केवल पढ़कर सुनाया था बल्कि सभी को सख्ती से इसे पालन करने की हिदायत भी दी थी. आज कार्यालय जाते समय बाबूराम यह सोचकर बेहद प्रसन्न हो रहा था कि आज से कोई भी उसे ‘लंगड़ा बाबू’ या ‘लंगड़दीन’ कहकर मज़ाक नहीं उड़ायेगा.
कार्यालय में प्रवेश करते ही एक सहकर्मी ने ऊँचे स्वर में आवाज लगायी,
“हैलो मिस्टर दिव्यांग !”
यह सुनते ही कार्यालय ठहाकों से गूंज उठा, बाबूराम को ऐसा महसूस हुआ कि उसकी पोलियो ग्रस्त टांग पर किसी ने जोर से हथौड़ा मार दिया हो.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बागी साहब, हथौड़ा सिर्फ बाबूराम की टांग पर नहीं वरन पढनेवाले के दिमाग पर पड़ गया मानो! गजब लोग होते हैं और गजब होती है लेखन की शैली! बहुत ही जोरदार!
/“हैलो मिस्टर दिव्यांग !”/ इस एक पंक्ित में व्यंग्य की जो तीक्ष्ण धार है वह इस लघुकथा के प्राण है । लघुकथा का शीर्षक 'विकलांग' देखने में साधारण लगता है परन्तु यह एक बहुआयामी शीर्षक है जो इशारा करता है कि वास्तव में 'विकलांग' है कौन? व्यंग्य के बारे में कहा जाता है कि 'व्यंग्य वह तेज़ नश्तर है जिससे लेखक समाज के गंदे फोड़े खोलता है और उसे स्वास्थ्य, शक्ित और प्रगति की ओर बढ़ाने की चेष्टा करता है' । इस लिहाज़ से लघुकथा का शीर्षक 'विकलांग' वाकई में मानसिक विकलांग प्रवृत्ति के लोगों पर एक शक्ितशाली प्रहार करने में समर्थ प्रतीत हो रहा है। शार्ट एंड क्रिस्पी प्रस्तुतिकरण, गहन व अर्थप्रधान संदेश देती इस लघुकथा हेतु हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय बाग़ी भाई जी ।
आदरणीय बागी जी आपने अपनी लघु कथा में स्थिति का सही और सटीक आंकलन किया है। एक तरफ जहां आपने लोगों की संकुचित मानसिकता का परिचय दिया है तो दूसरी ओर किसी मजबूरी पर अट्टहास की तीक्ष्ण धार से किसी के दिल पे क्या गुजरती है इसे आपने बड़ी संजीदगी से उभारा है। इस कटु सच को जीवंत करती लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सर।
आदरणीया राजेश जी, लघुकथा अपने मूलस्वरूप में आप तक पहुँच सकी और आपकी सराहना प्राप्त की इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ, बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी टिप्पणी पढ़ कर ऐसा लगा कि जो मैं कहना चाहता था वह हुबहू पहुँच रही है, बहुत बहुत आभार आदरणीय.
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