१२२२ १२२२ १२२
इन आँखों में जो सपने रह गये हैं
बहुत ज़िद्दी, मगर ग़मख़ोर-से हैं
अमावस को कहेंगे आप भी क्या
अगर सम्मान में दीपक जले हैं
अँधेरों से भरी धारावियों में
कहें किससे ये मौसम दीप के हैं
प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं
उन्हें शुभ-शुभ कहा चिडिया ने फिर से
तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ गये हैं
उमस बेसाख़्ता हो, बंद कमरे-
कई लोगों को फिर भी जँच रहे हैं
करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं
सड़क पर शोर से कब है शिकायत,
चढ़ी नज़रें मुखर आवाज़ पे हैं !
नयी फुनगी दिखी है फिर तने पर
बया की चोंच में तिनके दिखे हैं
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं
वाह आदरणीय सौरभ सर कितनी हकीकत बयानी है इस शेर में। ममता की मार्मिकता को इस शेर में दूर तक महसूस किया है मैंने। अब सब रिश्ते उपकरण हो गए और सारे उपकरण रिश्तों में बदल गए ... वाह रे वर्तमान ... वाह रे नयी सभ्यता ... इस खूबसूरत अशआर वाली दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल की गहराईयों से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।
//अँधेरों से भरी धारावियों में
कहें किससे ये मौसम दीप के हैं//
यह शेअर बहुत दिन तक याद रहेगाI उम्दा ग़ज़ल हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें आ० सौरभ भाई जीI
क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने वाह बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये सादर |
आदरणीय सौरभ भाई , बेहतरीन गज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को , मतला दमदार है और सभी अशआर काबिले दाद हैं ।
ये पाँच अशार बहुत खास लगे , दिल से बधाइयाँ गज़ल के लिये ।
अमावस को कहेंगे आप भी क्या
अगर सम्मान में दीपक जले हैं - अब तो यही हो रहा है , आम बात है , दुखद है
प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं ----- सच बात कही आपने
उन्हें शुभ-शुभ कहा चिडिया ने फिर से
तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ गये हैं---- जलन है भाई जी , साथ मे भविष्य को ले कर भय भी
करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं ----- बुज़ुर्गों का दुख पूरी तरह बाहर आया है .... बहुत खूब
नयी फुनगी दिखी है फिर तने पर
बया की चोंच में तिनके दिखे हैं .... नई सुबह की संभावना .. बहुत बहुत बधाई आदरणीय आपको ।
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