For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलना ही सीखना है तो ठोकर तलाश कर (ग़ज़ल)

221 2121 1221 212

दुनिया को छोड़ पहले ख़ुद अंदर तलाश कर
ऊंचे से इस मकान में इक घर तलाश कर

हमवार फ़र्श छोड़ के पत्थर तलाश कर
चलना ही सीखना है तो ठोकर तलाश कर

ख़ुद को जला के देख जो सच की तलाश है
किस ने तुझे कहा कि पयम्बर तलाश कर

हरियालियां निगल के उगलता है कंकरीट
इस वक़्त किस तरफ़ है वो अजगर, तलाश कर

तेरा सफ़र में साथ निभाए तमाम उम्र
ए ज़ीस्त कोई ऐसा भी रहबर तलाश कर

*जय* प्यास ही से प्यास का मिट सकता है वजूद
ऐसा भी क्या हमेशा समंदर तलाश कर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 796

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 9:33am

आदरणीय अच्छी अज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
पर्वर्तन के लिये मै , आ. समर भाई की सलाह का अनुमोदन करता हूँ , बहुत सटीक  सलाह है .. बाक़ी आप स्वतंत्र हैं ।

Comment by Samar kabeer on December 1, 2016 at 10:47am
"तू इसके वास्ते न समंदर तलाश कर"
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 1, 2016 at 10:40am

वही अर्थ रखना हो तो इस तरह भी कर सकते हैं

ऊ‍ँचे मकान छोड़ तू इक घर तलाश कर

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 1, 2016 at 2:21am

आदरणीय समर कबीर जी, आदरणीय धर्मेन्द्र जी,बहुत बहुत धन्यवाद आपलोगों को।

मैं उक्त मिसरा ए सानी की जगह पर प्रस्तुत मिसरा रखने पर आपलोगों का अनुमोदन चाहता हूँ-

"मत वक़्त ज़ाया कर तू समंदर तलाश कर"

ये कैसा रहेगा?

सादर!!

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 1, 2016 at 2:18am

आदरणीय डॉ गोपाल जी, हार्दिक धन्यवाद आपको।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2016 at 11:28am

आ० भाई जयनित जी सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2016 at 11:30pm

आदरणीय जयनित जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 27, 2016 at 7:28pm

आदरणीय बहुत सुन्दर ...............बधाई 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:53pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय जयनित जी। दाद कुबूल करें। समर साहब से सहमत हूँ।

Comment by Samar kabeer on November 26, 2016 at 10:52pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मक़्ते के सानी मिसरे से मैं इत्तिफ़ाक़ नहीं करता,ऊला और सानी में रब्त नहीं हो रहा है,बहुत बारीक नुक्ता बता रहा हूँ,आपकी रदीफ़ बहुत मुश्किल है'तलाश कर',मेरा सुझाव है कि सानी मिसरा यूँ कर लें:-
"तू इसके वास्ते न समंदर तलाश कर"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
27 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
44 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
3 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। सुधीजनो के बेहतरीन सुझाव से गजल बहुत निखर…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जा रहे हो छोड़ कर जो मेरा क्या रह जाएगा  बिन तुम्हारे ये मेरा घर मक़बरा रह जाएगा …"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service