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सब्र है सबसे बड़ा जऱ दोस्तो(तरही ग़ज़ल)/सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र :2122 2122 212
---
उसने नगमा एक गाया देर तक
ऐसे ही हमको सुनाया देर तक।

सब्र है सबसे बड़ा जर दोस्तो
आलिमों ने यह सुझाया देर तक।

इश्क है वो रास्ता जो पाक है
सोच कर मन में बिठाया देर तक।

भाग उनके ही भले सब मानते
हो बड़ों का जिनपे साया देर तक।

भूख से तड़पा बहुत है यार वो
इसलिए उसने यूँ खाया देर तक।

भूलने की सोच कर आगे बढ़ा
भूल मैं उसको न पाया देर तक।

साथ चलने की कसम खाता रहा
आस में मुझको चलाया देर तक।


यह फकीरों ने बताया है हमें
"धूप रहती है न साया देर तक।"

जो भी राणा इस जहाँ से हो गया
बस भला ही याद आया देर तक।

मौलिक एवं प्रकाशित

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2017 at 9:27pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर,प्रयास को समय देकर सराहने के लिए बहुत-बहुत आभार!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 11:49am

ऑ० भाई सतविंदर जी बहुत सूंदर ग़ज़ल हुई है . हार्दिक बधाई .

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 4:52pm
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए सादर आभार।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 4:50pm
आदरणीय विजय निकोरे सर,सादर।स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 4:49pm
आदरणीयsurendrnaath भाई जी,हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 4:45pm
आदरणीय महेंद्र कुमार जी,सादर।हौंसलाफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत आभार।वांछित परिष्कार कर लिया गया है,सादर
Comment by narendrasinh chauhan on December 7, 2016 at 5:54pm

शानदार रचना

Comment by vijay nikore on December 6, 2016 at 7:39am

गज़ल के भाव बहुत अच्छे लगे। बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 3:47am
आद0 भाई सतविन्द्र जी सादर अभिवादन। आपको शानदार गजल के लिए बधाई। समर साहब की बातो पर गौर करियेगा
Comment by Samar kabeer on December 5, 2016 at 8:57pm
मतले का ऊला मिसरा यूँ कर लें तो आगे के क़ाफिये सही हो जायेंगे:-
"उसने नग़मा जब भी गाया देर तक"

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