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कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

कुंडलिया छंद 
=========
सुख-सुविधा से काटते, जीवन उसके साथ,
जब सजनी के काम में, आप बँटाते हाथ। | 
आप बँटाते साथ, ह्रदय में प्रेम बरसता 
करे सभी सहयोग, उसी के घर समरसता 
रहे सभी जब साथ, फिर न जीवन में दुविधा 
पुत्र बहूँ औ पौत्र, मिलें सबको सुख-सुविधा |
(2)
जीवन के संग्राम में, करते जो संघर्ष,
सुगम रह उसकी बने, जीवन हो उत्कर्ष ।
जीवन हो उत्कर्ष, राह में आगे बढ़ता
करे सत्य ही बात,अकारण कभी न अड़ता
स्वार्थ भावना छोड़, पड़ें न फेर में धन के
पूर्ण करें उद्देश, रहें जो भी जीवन के ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 17, 2016 at 11:37am

कुण्डलिया छंद पर आपकी उत्सावर्धक दिप्पनी के लिए हार्दिक आभार श्री मिथिलेश वामनकर जी |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 17, 2016 at 11:28am

कुंडलिया छंद पर आपकी प्ररेक टिपण्णी के लिए शुक्रिया श्री समर कबीर साहब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2016 at 10:59pm
आदरणीय लक्ष्मण सर आपने संदेश प्रद कुंडलिया छंद प्रस्तुत किए हैं इस प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाई सादर
Comment by Samar kabeer on December 6, 2016 at 8:35pm
जनाब लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी आदाब,बहुत अच्छे लगे आपके कुण्डलिया छन्द,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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