2122 2122 2122 212
कर की चोरी देखिये जी धन की चोरी देखिये
लूटकर पकड़े गये तो जब्रजोरी देखिये
नोट्बंदी देखिये जी नोट खोरी देखिये
पूंजियों की सीरतें भी काली गोरी देखिये
नोट्बंदी का हथौड़ा ऐसा बैठा पीठ पर
भ्रष्टता की सरबसर टूटी तिजोरी देखिये
बह रहे हैं नोट सारे वो पुराने हर जगह
क्या समन्दर क्या नदी तालाब मोरी देखिये
लूटखोरी की बदौलत खत्म पैसे बैंक में
लाइनों की टूटती अब आस डोरी देखिये
कुछ जुगाडू भेड़िये बैठे वतन में अबतलक
पास उनके अब नई नोटों की बोरी देखिये
कह रहे अखबार टीवी कह रही सरकार है
आने वाले वक़्त में तस्वीर कोरी देखिये
----------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत- बहुत शुक्रिया आपका |
आदरणीया राजेश दीदी समसामयिक गजल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें । हमारा विचार है नये नोटों की बोरी देखिये हो तो शायद उपयुक्त हो नोट पुल्लिंग है । सादर
आद० सुशील सरना जी,ग़ज़ल पर प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आपका सादर .
आद० समर भाई जी ,ये समसामयिक ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया तहे दिल से आभारी हूँ .
वर्तमान हालात के मद्देनज़र बहुत ही सशक्त ग़ज़ल की प्रस्तुति की है आदरणीया राजेश कुमारी जी। दिल से बधाई स्वीकार करें।
मिथिलेश भैया,ग़ज़ल पर आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया मिली बहुत बहुत आभारी हूँ |
आदरणीया राजेश दीदी, आपने तो नोटबंदी और उसके बाद की स्थिति पर पूरी ग़ज़ल ही कह दी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. वास्तविकता को उजागर करते अशआर प्रभावकारी हुए है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
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