For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़ंग .....

गलत है
मिथ्या है
झूठ है

कि 

उदासी
अकेलेपन की दासी है

अकेलेपन के किनारों पर
नमी का अहसास होता है
क्या अकेलापन
अंतस का
दर्द से
परिचय कराने का पर्याय है ?

जब कुछ नहीं होता
तो अकेलापन होता है
अकेलेपन में
स्व से परिचय होता है
अपने वज़ूद से
पहचान होती है
ज़िदंगी करीब आती है
अपना पराया समझाती है
अकेलेपन में
पीछे छूटे लम्हात
साथ निभाते हैं
खुद के अधूरेपन को
पूर्णता का अहसास कराते हैं
लोग व्यर्थ ही
अकेलेपन से घबराते हैं
अरे अकेलापन
कोई श्राप नहीं
ये तो
स्वयं को स्वयं से मिलाने का
अनूठा वरदान है
अकेलेपन की कंदरा में
सृजन का सागर है
प्यार के अमृत की
अनछुई गागर है
अकेलेपन को जो
जीना सीख लेते हैं
वो
ज़िन्दगी की
हर ज़ंग जीत लेते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवम अपरकाहित

Views: 413

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2016 at 8:49pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति के भावों को अपनी आत्मीयता से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2016 at 11:34pm

आदरणीय सुशील सरना सर, अकेलेपन को परिभाषित करती बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2016 at 4:45pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को अपनी सूक्ष्म समीक्षा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। भावों के बारे में आपके वक्तव्य से मैं पूर्णतः सहमत हूँ।  ये तो बस एक भाव आया तो उसे रचना का रूप दे दिया। बाकी आपके सुझाव का दिल से आभार। .. मुझे में के स्थान पर को अधिक प्रभावशाली प्रतीत हो रहा है। आपके आत्मीय सुझाव सदा मेरे सृजन को सशक्त रूप प्रदान करते हैं। पुनः आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2016 at 4:39pm

आदरणीय    Mahendra Kumar  जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय प्रशंसा से उपकृत हुई   ... हार्दिक आभार। 

Comment by Samar kabeer on December 18, 2016 at 8:27pm
जनाब सुशील सरना साहिब आदाब,अकेलेपन पर बहुत सुंदर कविता लिखी आपने,लेकिन अकेलापन भी कई तरह का होता है,ज़रूरी नहीं कि आदमी लोगों से कट कर अकेला हो,कभी कभी आदमी बड़ी भीड़ में भी अकेलापन महसूस करता है,बहरहाल अच्छी लगी आपकी कविता और ख़ासकर ये पंक्ति जो कविता का सार है"अकेलेपन को जो जीना सीख लेते हैं,वो ज़िन्दगी की हर जंग जीत लेते हैं"अकेलेपन को की जगह अगर "अकेलेपन में"करना उचित होगा क्या ?
इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 11:00am
अकेलापन एक बहुत बड़ी समस्या है। इसे रचनाकर्म का विषय बनाने और उस पर अच्छी कविता लिखने के लिए आपको दिल से ढेरों बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service