ज़ंग .....
गलत है
मिथ्या है
झूठ है
कि
उदासी
अकेलेपन की दासी है
अकेलेपन के किनारों पर
नमी का अहसास होता है
क्या अकेलापन
अंतस का
दर्द से
परिचय कराने का पर्याय है ?
जब कुछ नहीं होता
तो अकेलापन होता है
अकेलेपन में
स्व से परिचय होता है
अपने वज़ूद से
पहचान होती है
ज़िदंगी करीब आती है
अपना पराया समझाती है
अकेलेपन में
पीछे छूटे लम्हात
साथ निभाते हैं
खुद के अधूरेपन को
पूर्णता का अहसास कराते हैं
लोग व्यर्थ ही
अकेलेपन से घबराते हैं
अरे अकेलापन
कोई श्राप नहीं
ये तो
स्वयं को स्वयं से मिलाने का
अनूठा वरदान है
अकेलेपन की कंदरा में
सृजन का सागर है
प्यार के अमृत की
अनछुई गागर है
अकेलेपन को जो
जीना सीख लेते हैं
वो
ज़िन्दगी की
हर ज़ंग जीत लेते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवम अपरकाहित
Comment
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति के भावों को अपनी आत्मीयता से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना सर, अकेलेपन को परिभाषित करती बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई. सादर
आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को अपनी सूक्ष्म समीक्षा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। भावों के बारे में आपके वक्तव्य से मैं पूर्णतः सहमत हूँ। ये तो बस एक भाव आया तो उसे रचना का रूप दे दिया। बाकी आपके सुझाव का दिल से आभार। .. मुझे में के स्थान पर को अधिक प्रभावशाली प्रतीत हो रहा है। आपके आत्मीय सुझाव सदा मेरे सृजन को सशक्त रूप प्रदान करते हैं। पुनः आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय Mahendra Kumar जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय प्रशंसा से उपकृत हुई ... हार्दिक आभार।
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