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उसके दरबार में ……………

उसके दरबार में ……………

पूजा कहीं दिल से की जाती है
तो कहीं भय से की जाती है
कभी मन्नत के लिए की जाती है
तो कभी जन्नत के लिए की जाती है
कारण चाहे कुछ भी हो
ये निश्चित है कि
पूजा तो बस स्वयं के लिए की जाती है
कुछ पुष्प और अगरबती के बदले
हम प्रभु से जहां के सुख मांगते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
उसकी चौखट पे अपना सर झुकाते हैं
अपनी इच्छाओं पर
अपना अधिकार जताते हैं
इधर उधर देखकर
प्रभु के परम भक्त होने पर इतराते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
चन्द सिक्के दान कर
महा दानी बन जाते हैं
इस काया और माया पे
किसका अधिकार है
ये भी भूल जाते हैं
जानते हैं इस नश्वर संसार में
हर शै नाशवान है
फिर भी अपनी साँसों पे
कितना अभिमान है
मंदिर जाकर शायद
भौतिक संतुष्टि तो हो जाएगी
मगर
उसके दरबार में
जब तक
अहं के ताज़ को तज कर
निस्वार्थ भाव से
सर न झुकायेंगे
न ईश
हमें मिल पायेगा
न हम
ईश के हो पाएंगे

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 23, 2016 at 7:19pm

आदरणीय    narendrasinh chauhan जी रचना में  निहित भावों को स्वीकृति देती आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by narendrasinh chauhan on December 23, 2016 at 5:48pm

खूब सुन्दर रचना

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2016 at 8:56pm

आदरणीय  गिरिराज भाई साहिब  रचना के मर्म को अपनी आत्मीय स्वीकृति से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2016 at 8:55pm

आदरणीय   Mahendra Kumar  जी रचना में  निहित भावों को स्वीकृति देती आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2016 at 8:53pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर    जी रचना में निहित भावों को अपनी सहमति से अलंकृत कर उसका मान बढाने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2016 at 8:51pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'   जी रचना के मर्म को सहमति देती आपकी आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 21, 2016 at 5:11pm

आदरनीय सुशील भाई , एक कटु सत्य लिखा है आपने, हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Mahendra Kumar on December 21, 2016 at 11:35am
आदरणीय सुशील सरना जी, प्रार्थना विषय पर बढ़िया संदेशपरक कविता लिखी है आपने। मेरी तरफ से आपको हार्दिक बधाई। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2016 at 12:08am

आदरणीय सुशील सरना सर, प्रार्थना के महत्त्व, उसकी वास्तविकता और उसके सार को शाब्दिक करती बहुत बढ़िया संदेशप्रद प्रस्तुति हुई है. वास्तव प्रार्थना का मूल निस्वार्थ भाव ही  है.  इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 7:29pm
आदर्णीय सुशील सरना जी, पूजा तो अपने लिए ही की जा रही है, एकदम सत्य कथ्य, आपको अच्छी रचना के लिए बधाई निवेदित हैं

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