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मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है (तरही गजल)

बह्र 2122 1122 1122 22

सोने चाँदी का जहाँ में न ख़याल अच्छा है
वक़्त पर काम जो आये वही माल अच्छा हैं।

हम जवाब़ो से परखते है रजामंदी को
मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा हैं।

शोर चलने नहीं देता है ये संसद यारो
फिर भी कैसे मै कहूँ ये कि बवाल अच्छा है।

एक सीमा में है अल्फाज़ पे सख़्ती लाज़िम
हद में रह कर जो करेंगे वो धमाल अच्छा है।।

मर रहे भूख से बच्चे तो कही बेबस माँ
वो समझते है कि इस देश का हाल अच्छा है।

अच्छे दिन कैसे कहूँ इनको बताओ यारो
हाल बदला नहीं फिर कैसे मआल अच्छा है?

बै अमल जितने हैं, ख़ुश हो के यही रटते हैं
"इक बिरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है।"

कर गुज़रने की तमन्ना हो अगर कुछ दिल में
फिर जो आये वो ज़वानी का उबाल अच्छा है।

चैन की नींद न आई तेरी यादों में 'नाथ'
मेरे दिल को किया तूने ये हलाल अच्छा है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on January 5, 2017 at 12:06pm
बृजेश कुमार बृज जी आभार आपका
Comment by नाथ सोनांचली on January 5, 2017 at 12:05pm
आदरणीय समर कबीर साहब, आप सबकी इस्लाह और सीख का असर है की कुछ शैर कह पाता हूँ, आपके आशीर्वाद और प्रोत्साहन का हृदय से आभार
Comment by narendrasinh chauhan on January 5, 2017 at 11:46am

सुन्दर रचना 

Comment by Mahendra Kumar on January 4, 2017 at 10:42pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। एक निवेदन है – कृपया मंच के नियमानुसार ग़ज़ल की बह्र लिख दिया करें। सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 4, 2017 at 9:56pm
वाह बहुत उम्दा
Comment by Samar kabeer on January 4, 2017 at 9:02pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,चचा 'ग़ालिब'की ज़मीन में बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं ।

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