For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मीत नहीं
संगीत नहीं
प्रेम का कोई गीत नहीं ।

दिल ही नहीं
धड़कन ही नहीं
जीवन की यह रीत नहीं ।

इंसान हैं तो दिल भी होगा
दिल में बसा संगीत भी होगा
बिन संगीत जीवन नहीं ।
बिना प्रीत के मिलन नहीं ।

गाओ गाओ मधुर तराने
प्रेम के होते बहुत फ़साने
बिना फ़साने के प्रेम नहीं
प्रेम नहीं तो जीत नहीं ।

जियो जियो तो ऐसे जियो
मधुर प्रेम के प्याले पियो
प्याले में मिश्री भी घोलो
मीठी मीठी वाणी बोलो ।

प्रेम के गीत जब गाओगे
मन के मीत को पा जाओगे
गीत भी होगा
मीत भी होगा
मधुर मधुर संगीत भी होगा ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 11:00pm
आदरणीया कल्पनाजी , सुंदर गीत की प्रस्तुति पर बधाई !
Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 9:54pm

अति सुन्दर प्रेम भाव !

सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 6, 2017 at 4:48pm
सादर धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश सर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 6, 2017 at 4:42pm

आदरणीय आशुतोष जी, आपने मेरी प्रतिक्रिया पर ध्यान दिया, उसके लिए हार्दिक आभार. आप गीत विधा पर अक्सर जानकारी हेतु उत्सुक रहते हैं और अब गीत की चर्चा निकली ही है तो अपने मन की बात साझा करता चलूँ- सर्वप्रथम तो गीत को इस प्रकार समझें कि गीत में मुख्यतः दो भाग होते है- 1. मुखड़ा 2. अंतरा

  1. मुखड़ा – यह गीत का आरम्भ होता है जिसका तुकांत ऐसा रखा जाता है कि अंतरे की आखिरी पंक्ति में टेक लगाईं जा सके. यह किसी छंद, बह्र आधारित भी हो सकता है और नहीं भी.
  2. अंतरा- यह गीत के कथ्य का मुख्य भाग है जिसमें पंक्तियों की संख्या निश्चित नहीं है. बस यह ख़याल रखा जाता है कि अंतरे की अंतिम पंक्ति का तुकांत मुखड़े के समान हो ताकि टेक लगाईं जा सके. किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि मुखड़ा जिस छंद, बह्र, या मात्रात्मक वज्न में हो उसी छंद, बह्र, या मात्रात्मक वज्न में अंतरा भी हो. अंतरा भिन्न छंद, बह्र, या मात्रात्मक वज्न में हो सकता है. किन्तु यह आवश्यक है कि एक गीत के सभी अंतरे समान छंद, बह्र, या मात्रात्मक वज्न में हो. अंतरों को अलग अलग वज्न में नहीं रखा जाता है.

स्पष्ट है कि मुखड़े और अंतरे का मात्रात्मक वज्न भिन्न-भिन्न हो सकता है किन्तु एक गीत के किन्ही दो अंतरों का मात्रात्मक वज्न भिन्न-भिन्न नहीं हो सकता है. गीत की पंक्तियाँ चाहे वह मुखड़ा हो या अंतरा, ऐसी हों कि उन्हें गाया जा सके. वें गेय हों. शब्द-कलों को ऐसे बिठाया जाएँ कि पंक्तियों की गेयता कहीं भंग न हो. ओबीओ मंच पर आदरणीया प्राची जी के गीत इस विधा को समझने में आपकी बहुत सहायता करेंगे.


गीत की तुलना में, नवगीत एक नई विधा है किन्तु वह भी गेयता आधारित है बस उसके अंतरों में तुकांतता की अनिवार्यता नहीं होती किन्तु टेक के लिए मुखड़े की तुकांतता को अंतरे की अंतिम पंक्ति में ध्यान में रखा जाता है. नवगीत में एक मुखड़ा और दो या अधिक अंतरे होते है तथा अंतरे की अंतिम पंक्ति मुखड़े की पंक्ति के तुकांत होती जिससे अंतरे के बाद मुखड़े की पंक्ति की टेक लगाईं जा सके. नवगीत में भी छंद से संबंधित कोई विशेष नियम नहीं है मगर पंक्तियों में मात्राएँ संतुलित रहे जिससे गेयता और लय में रुकावट न पड़े. कथ्य के स्तर पर लोकतत्त्व का समावेश, तुकान्त के स्थान पर लयात्मकता को महत्त्व, नए प्रतीक व नए बिम्बों का प्रयोग, प्रकृति का सूक्ष्म निरिक्षण, वैज्ञानिकता लिए दृष्टिकोण, सकारात्मक सोच और कहने का ढंग कुछ नया और प्रभावशाली हो. इसके लिए आप मंच पर आदरणीय सौरभ सर के नवगीत देख सकते हैं.

संभवतः मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. गीत विधा के कोई निश्चित नियम नहीं हैं किन्तु परंपरा अनुसार उपरोक्त बिन्दुओं का ही ध्यान रखा जाता है. गीत और नवगीत विधा का मैं भी बिलकुल नया अभ्यासी हूँ मगर फिर भी इस मंच से जो कुछ पाया है उसे ही साझा कर रहा हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 6, 2017 at 2:08pm

आदरनीया कल्पना जी , अच्छा गीत रचा है आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 6, 2017 at 9:33am
आदरणीय मिथिलेश जी की प्रतिक्रिया। से गीत के सम्बन्ध में उठ रहे प्रश्न का जवाब मुझे मिल गया है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 6, 2017 at 3:05am

आदरणीया कल्पना जी, प्रेम की भावाभिव्यक्ति बहुत बढ़िया है. आपने कविता का शीर्षक "प्रेम-गीत" दिया है, इस कारण मैं प्रस्तुति को गीत समझ कर पढ़ रहा था. बहरहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 5, 2017 at 12:13pm
आद0 कल्पना जी सादर अभिवादन, इस उत्तम गीत के लिए बधाई निवेदित हैं।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 5, 2017 at 8:35am
आदरणीया कल्पनाजी इस सूंदर गीत पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Mahendra Kumar on January 4, 2017 at 10:44pm
आदरणीय कल्पना जी, बहुत बढ़िया प्रेम गीत लिखा है आपने। इस प्रस्तुति पर मेरी तरफ से ढेरों बधाई प्रेषित है। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service