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//यूसुफ भाई कभी अपने बनाए चित्र को देखते, कभी दोनों दोस्तों की ओर। फिर एक लम्बी सांस लेकर दोनों दोस्तों से बोले- "ये नई सदी की नई फसल है, काग-भगोड़ों या बिजूकों के भरोसे नहीं, खुद की कर्म-किरणों से जीवन में रंग भरेगी!"//
बहुत ही खूबसूरत लघु कथा लिखी है आपने ... बहुत-कुछ सोचने को देती इस रचना के लिए हृदयतल से बधाई, आदरणीय भाई शेख़ उस्मानी जी।
आदरणीय उस्मानी जी, बढ़िया लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई. काग-भगोड़ों या बिजूकों में से एक शब्द का प्रयोग क्या ज्यादा उचित नहीं होता? सादर
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