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आदरणीय बृजेश जी, यह प्रस्तुति गीत कैसे हो गई ? मैं समझ नहीं सका, कृपया मार्गदर्शन निवेदित है. सादर
भाई जी प्रणाम! आपका गीत पढ़ा. पहले दो बन्दों पर अटक गया.
इन पंक्तियों को कृपया देखें और इनका आशय समझने में मेरी सहायता करें-
'हुआ तेज जब अरुणोदय का'
'हँसता पूरब देख चंद्र को'
क्षमा सहित, इसे एक पाठक की जिज्ञासा समझें.
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. आपकी प्रस्तुति 16-16 मात्रा आधारित प्रस्तुति है जिसमें शुरुआत के तीन बंद गेय हैं और प्रवाह भी बहुत बढ़िया है किन्तु बाद में यह प्रवाह बाधित होता सा लग रहा है. ऐसा क्यों? जबकि मात्रात्मक भार 16-16 मात्रा ही है. इसका कारण है पंक्तियों का मात्रात्मक भार समान होने के बावजूद शब्द-कलों के अनुसार संयोजित न होना.
शब्द-कलों को समझने के लिए यह उदाहरण मैं अक्सर देता हूँ, प्राचीन काल से ही मंदिरों और कई पुरानी इमारतों के बनाने में पत्थरों की कटिंग की एक विशिष्ट तकनीक अपना कर बड़ी बड़ी इमारतें तैयार कर ली जाती थी. इसमें एक पत्थर के एक तरफ ऐसी कटिंग करते थे कि दूसरे पत्थर की वैसी ही कटिंग में वह फिट बैठ जाए. बस ऐसे ही पत्थरों को एक दुसरे के साथ फिट करते हुए विशाल इमारत बन जाती थी. शब्द-कलों को मैंने भी ऐसे ही समझा है. एक त्रिकल आये तो दूसरा त्रिकल लाकर उसे फिट कर दो. जैसे
[शैल शि ] [खर हो] [रहे सु] [शोभित]
अब आप देखिये कि आपने इस पंक्ति में कितने बढ़िया त्रिकल मिलाकर चौकल बनाए है. आपने 'शैल' के अकेले पड़े 'ल' को 'शिखर' के 'शि' से पूर्ण कर चौकल बना दिया. ऐसे ही देखिये 'रहे+सु' का भी चौकल पूर्ण हुआ
आपकी प्रस्तुति 16-16 मात्रा यानी चौपाई छंद आधारित है. चौपाई का छन्द वास्तव में समकलों का समुच्चय है. यानि पंक्ति के शब्द मुख्यतः समकल, यानी, द्विकल, चौकल आदि का समूह होते हैं. कोई त्रिकल शब्द हो भी तो वह अन्य त्रिकल शब्द द्वारा सपोर्ट पाकर समकल बन जाता है. पंक्तियों के अंतिम भाग में त्रिकल शब्द आते हैं तो भले ही कुल मात्रा 16 हो लेकिन चौपाई की पंक्ति के प्रवाह को तोड़ देते हैं. जैसा कि //मलय समीर की मन्द बयार// और //मनुज उठो, देखो नव विहान// इन पंक्तियों में हुआ है.
संभवतः मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. सादर
आदरणीय सुरेन्द्र भाई , बढ़िया गीत रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । आदरणेय गोपाल भी जी की बात से मुझे भी सही लग रही है , आखिरी के दो बन्द मे गेय्ता सधी नही है ।
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