"अरे! लड़कियों जल्दी से भीतर आओ बड़ी मालकिन बुला रही हैं।" हवेली की बुजुर्ग नौकरानी ने आंगन में गा-बजा रही लड़कियों को पुकारा तो सब उत्साहित हो झट से चल पड़ी।
मालकिन की तो ख़ुशी का कोई ठिकाना न था। आखिर इकलौते पोते की पसन्द को स्वीकारने के लिए उन्होंने अपने बहू-बेटे को मना जो लिया था। पर इसके लिए उन्होंने यह शर्त भी रखी थी कि विवाह उनके पारिवारिक रीति-रिवाज से होगा। भावी वधू के साथ-साथ घर की स्त्रियां भी चाव से गहने देखने लगी।
"अरे ! ये मांग टीका अब कौन पहनता है?" होने वाली बहू की छोटी बहन ने हाथ में उठाकर बहन को सवालिया नजरों से देखा।
"हमारी संस्कृति में हर गहने का अपना महत्व होता है बेटा!" कहते हुए मालकिन माँग टीका बहू की माँग में सजा कर मुस्कुराने लगी। अभी तक इधर-उधर ठिठोली कर रही लड़कियाँ शांत होकर, सुनने के लिए,मालकिन के करीब सिमट आईं।
"ये मांगटीका देख रही हो? नववधू को ये अहसास दिलाने के लिए पहनाया जाता है कि अब से उसके सिर पर एक नही दो कुलों के सम्मान को निभाने की जिम्मेदारी है।"
"अरे बाप रे, इतनी भारी! इस नथ से तो नाक ही दुःख जाएगी भाभी की।" अपनी नाक की कील में नथ लटका कर उस से वजन का अंदाज़ा करती, वर की बहन की सहेली बोल पड़ी तो सब खिलखिला पड़े।
" नहीं नहीं, बेटा ये नाक की दुखन भी तो एक संकेत है बहू के लिए कि वो कोई भी ऐसा काम न करे जिस से दो कुलों की नाक पर कोई बात आए।"
"चूड़ियों का भी बताइये?" पीछे खड़ी छोटी मालकिन ने घूँघट में से धीरे से कहा।
" हाँ छोटी, हर दम खनकती चूड़ियाँ ये एहसास करवाती हैं कि तुम जो कहती हो, करती हो तुम जानो या न जानो पर उसकी प्रतिध्वनि दूर तक तक जाती है।"
"और ये पैरों की उँगलियों को बींधने वाले बिछुए माँ जी? इनका भी कुछ होता है?" सबसे पीछे खड़ी कौतूहल से सब देखती सुनती घर की धोबन आँखों में अचंभा भर पूछ ही बैठी।
"ये... ये तो बहुत महत्व रखतें हैं, हर पग बढ़ाने से पहले याद दिलातें है कि तुम किसी की पत्नी, किसी कुल की वधु हो,और तुम्हारा हर उठता बढ़ता कदम और उसका परिणाम, उन सब पर भी प्रभाव अवश्य डालेगा।"
"गहना का मतलब यह सब होता है अम्मा?" पीछे बैठ देर से चुपचाप सबकी बात सुन रही, नौकरानी की लड़की ने अपनी माँ की कान में फुसफुसा कर पूछा।
"हमारे लिए तो बुरे बखत के साथी होते हैं,बस्स।"नौकरानी ने साड़ियाँ तह करते हुए कहा ।
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आद० सीमा जी,एक बहुत ही यथार्थ परक सुंदर लघु कथा कही है आपने.वक़्त कितना बदल गया है तो गहनों के मानी भी बदल गए हैं आज की महिलाओं के लिए तो श्रृंगार के अलावा कुछ भी नहीं किन्तु ये सबसे बड़ा सच है की गरीब के लिए तो वक़्त जरूरत पर एक मदद गार है गहने पंच लाइन इस लघु कथा को बहुत ऊँचाई पर ले जाती है बहुत बहुत बधाई आपको ,
आदरणीया सीमा जी, बहुत बढ़िया लघुकथा कही है आपने. हार्दिक बधाई. बाकी गुनीजन कह ही चुके हैं. सादर
आज के इस समय में जब स्त्री अस्मिता के सवाल पूरी शिद्दत के साथ उठ खड़े हुए हैं, तब गहनों के ये प्रतीकात्मक अर्थ कितने मायने रखते हैं? यूँ भी स्त्री के शरीर पर गहने बंधन और दासता के ही प्रतीक रहे हैं. दो कुलों की अस्मिता का दायित्व पुरुषों पर न होकर स्त्री के शरीर का बोझ क्यों है? आज भी प्रतिध्वनि कुछ वैसी ही है, हाँ, सौन्दर्य के मुखौटे में गहनों को जस्टिफाई करने की कोशिश जरूर हुई है. लघुकथा में एक नयी सोच, नयी पहल, नवीन दृष्टि का होना उसे महत्वपूर्ण बनाता है.
खैर, इस लघुकथा के लिए बधाई!
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