For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हुआ है धमाका/// गजल

122 122 122 122

 

सियासत के जरिये हुआ है धमाका

जुबां बंद करिये हुआ है धमाका

 

किसे फ़िक्र है अब लहू फिर बहेगा  

कि वहशत बजरिये हुआ है धमाका

 

कहाँ शांति रहती है सरहद पे यारों

ज़रा आँख भरिये हुआ है धमाका

 

है जाना जरूरी चले जाइयेगा

तनिक तो ठहरिये हुआ है धमाका

 

बड़ी देर से आप चश्मेकफस में 

कि आहिस्ता ढरिये हुआ है धमाका

 

नहीं खून का खेल गर खेल सकते

तो बेमौत मरिये हुआ है धमाका

 

धमाकों से गर यूँ ही डरते रहेंगे

तो बेखौफ़ डरिये हुआ है धमाका

 

मिटेगी यकीनन धमाके की दहशत

अभी धीर धरिये हुआ है धमाका

 

नयी राह चलिये नजरिये बदलिये  

कि अब तो सुधरिये हुआ है धमाका

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

Views: 811

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 9:11pm
'ज़रीया' नहीं मुहतरम "ज़रीआ"
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2017 at 8:46pm

हाँ सादर  समर कबीर साहिब , अब जरीया  हमेशा याद रहेगा . आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2017 at 8:34pm

आ० अनुज , बहुत बहुत आभार

Comment by Samar kabeer on January 17, 2017 at 9:16pm
"ज़रिया"शब्द इतना प्रचलन में आ गया है कि क्या कहें,मैंने ये बातें सिर्फ़ आपके ध्यान में लाने के लिये कही हैं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 8:29pm

अदरणीय बड़े भाई  , बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने ,दिली बधाइयाँ प्रेषित है स्वीकार कीजिये ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:19pm

आ० मिथिलेश जी . बहुत बहुत आभार . समर कबीर साहिब की बात मैं सदैव गंभीरता से लेता हूँ . सादर . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:18pm

आ० सुरेन्द्र जी , आभार . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:17pm

आ० समर कबीर साहिब , जरीया  मुझे पता नहीं था पर हिन्दी शब्दकोष में  में जरिया शब्द स्वीकृत है और गजल में इसे संशोधित  कर पाना अब संभव नहीं है . तकाबुले -ए- रदीफैन मैंने अपने संग्रह में सही कर लिया है . बेख़ौफ़ दरिये व्यंगात्मक है और विरोधाबास  नामक  अंगरेजी अलंकार से अनुप्राणित है . पर आपकी सम्मति सर्वोपरि है . सादर . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 17, 2017 at 7:11pm

आ० आरिफ जी , बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2017 at 11:54am

आदरणीय गोपाल सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. आदरणीय समर कबीर जी की बातों पर गौर कीजियेगा. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service