For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,
 
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम

Views: 1515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 4, 2011 at 12:35pm
आदरणीय योगराज सर, जिस के सर पर आप जैसे गुणी का हाथ हो वो बहुत ही भाग्यशाली है, मैं भी कुछ एक भाग्यशाली लोगो में शामिल हूँ , आपकी सराहना मेरे लिए बहुत ही मायने रखता है | बहुत बहुत धन्यवाद आपके आशीष वचन हेतु |

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2011 at 12:23pm
मान लिया बागी जी मान लिया, आपकी ग़ज़ल और वजन-ओ-बहर की जानकारी का लोहा मान लिया ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने, दिल से बधाई देता हूँ - स्वीकार करें !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2011 at 6:50pm

आदरणीय सौरभ भाई साहब, आप का कथन बिलकुल सत्य है "सत्संग" की महिमा वास्तव में अपरम्पार है, सराहना हेतु धन्यवाद |

और पुछल्ला के बारे में केवल इतना भर कहना है कि...........जैसा मैने ऊपर भी कहा "सत्संग" की महिमा वास्तव में अपरम्पार है,


Big Smileys

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2011 at 6:46pm

भाई गणेशजी, इस पंक्तियों और बंदिशों पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें. 

कहना न होगा सत्संग की महिमा अपरम्पार है. हर तरह के विकास के रास्ते खोल देती है. मुसलसल परिपक्वता इस बात की परिचायक है. पुनः बधाई.

 

पुछल्ला :

मुबाइल भूल घर पर एक सुनो मैं हीं नहीं जाता..

भुलक्कड़ हैं कई अपने ये मानों या न मानों तुम..   :-))


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2011 at 6:34pm
धन्यवाद नीरज त्रिपाठी जी
Comment by neeraj tripathi on June 2, 2011 at 11:51am
terrific...so true.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2011 at 6:45pm

आदरणीय तिलक सर, सादर प्रणाम, मेरी खुशकिस्मती है जो आपने इस नाचीज की ग़ज़ल को सराहा और सबसे बड़ी बात कि चूक की ओर ध्यान दिलाया, हालाकि आप की कक्षा से मैंने इसे सिखा भी था, पर फिर भी .......कान पकड़ कर माफ़ी , आगे से हमेशा ध्यान रखूँगा,

धन्यवाद सर |

Comment by Tilak Raj Kapoor on June 1, 2011 at 6:32pm
सामान्‍यतय: ग़ज़ल को कोई शीर्षक नहीं देता लेकिन आपने 'कुछ कड़वा सा एहसास' शीर्षक देकर मन्‍शा पहले ही स्‍पष्‍ट कर दी। गहरे दर्द हैं हर शेर के तसव्‍वुर में, काफ़ी कुछ आज के परिवारों के विघटन की स्थितियॉं भी। ग़ज़ल अच्‍छी है। एक चूक की ओर ध्‍यान दिलाना चाहूँगा। काफि़या में 'में' का प्रयोग इस ग़ज़ल में ग़ल़त है। आपने मत्‍ले के शेर में 'ए' का स्‍वर निर्धारित किया है 'एं' का नहीं। आरंभिक ग़ज़ल के नजंरिये से अभी ये क्षम्‍य है। रदीफ़ खूब लिया है और निभाया भी है।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 31, 2011 at 11:11pm

आदरणीय राजेंद्र भाई साहिब, आप जैसे फनकार से तारीफ़ पाकर ह्रदय प्रफुलित हो उठा, बहुत बहुत धन्यवाद सराहना हेतु |

 

यहां गर हम नहीं आते , बहुत नुकसान में रहते
कहां हम आपसे मिलते ये मानो या न मानो तुम !.......वाह वाह वाह बहुत खूब

 

आप जैसे फनकार को पाकर ओ बी ओ परिवार भी समृद्ध हुआ है, यक़ीनन हम सब गौरवान्वित है आपको अपने मध्य पाकर | स्नेह बनाये रखे |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 31, 2011 at 10:59pm
धीरज भाई, हौसलाफजाई हेतु , धन्यवाद |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
9 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service