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सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,
 
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 4, 2011 at 12:35pm
आदरणीय योगराज सर, जिस के सर पर आप जैसे गुणी का हाथ हो वो बहुत ही भाग्यशाली है, मैं भी कुछ एक भाग्यशाली लोगो में शामिल हूँ , आपकी सराहना मेरे लिए बहुत ही मायने रखता है | बहुत बहुत धन्यवाद आपके आशीष वचन हेतु |

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2011 at 12:23pm
मान लिया बागी जी मान लिया, आपकी ग़ज़ल और वजन-ओ-बहर की जानकारी का लोहा मान लिया ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने, दिल से बधाई देता हूँ - स्वीकार करें !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2011 at 6:50pm

आदरणीय सौरभ भाई साहब, आप का कथन बिलकुल सत्य है "सत्संग" की महिमा वास्तव में अपरम्पार है, सराहना हेतु धन्यवाद |

और पुछल्ला के बारे में केवल इतना भर कहना है कि...........जैसा मैने ऊपर भी कहा "सत्संग" की महिमा वास्तव में अपरम्पार है,


Big Smileys

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2011 at 6:46pm

भाई गणेशजी, इस पंक्तियों और बंदिशों पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें. 

कहना न होगा सत्संग की महिमा अपरम्पार है. हर तरह के विकास के रास्ते खोल देती है. मुसलसल परिपक्वता इस बात की परिचायक है. पुनः बधाई.

 

पुछल्ला :

मुबाइल भूल घर पर एक सुनो मैं हीं नहीं जाता..

भुलक्कड़ हैं कई अपने ये मानों या न मानों तुम..   :-))


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2011 at 6:34pm
धन्यवाद नीरज त्रिपाठी जी
Comment by neeraj tripathi on June 2, 2011 at 11:51am
terrific...so true.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2011 at 6:45pm

आदरणीय तिलक सर, सादर प्रणाम, मेरी खुशकिस्मती है जो आपने इस नाचीज की ग़ज़ल को सराहा और सबसे बड़ी बात कि चूक की ओर ध्यान दिलाया, हालाकि आप की कक्षा से मैंने इसे सिखा भी था, पर फिर भी .......कान पकड़ कर माफ़ी , आगे से हमेशा ध्यान रखूँगा,

धन्यवाद सर |

Comment by Tilak Raj Kapoor on June 1, 2011 at 6:32pm
सामान्‍यतय: ग़ज़ल को कोई शीर्षक नहीं देता लेकिन आपने 'कुछ कड़वा सा एहसास' शीर्षक देकर मन्‍शा पहले ही स्‍पष्‍ट कर दी। गहरे दर्द हैं हर शेर के तसव्‍वुर में, काफ़ी कुछ आज के परिवारों के विघटन की स्थितियॉं भी। ग़ज़ल अच्‍छी है। एक चूक की ओर ध्‍यान दिलाना चाहूँगा। काफि़या में 'में' का प्रयोग इस ग़ज़ल में ग़ल़त है। आपने मत्‍ले के शेर में 'ए' का स्‍वर निर्धारित किया है 'एं' का नहीं। आरंभिक ग़ज़ल के नजंरिये से अभी ये क्षम्‍य है। रदीफ़ खूब लिया है और निभाया भी है।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 31, 2011 at 11:11pm

आदरणीय राजेंद्र भाई साहिब, आप जैसे फनकार से तारीफ़ पाकर ह्रदय प्रफुलित हो उठा, बहुत बहुत धन्यवाद सराहना हेतु |

 

यहां गर हम नहीं आते , बहुत नुकसान में रहते
कहां हम आपसे मिलते ये मानो या न मानो तुम !.......वाह वाह वाह बहुत खूब

 

आप जैसे फनकार को पाकर ओ बी ओ परिवार भी समृद्ध हुआ है, यक़ीनन हम सब गौरवान्वित है आपको अपने मध्य पाकर | स्नेह बनाये रखे |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 31, 2011 at 10:59pm
धीरज भाई, हौसलाफजाई हेतु , धन्यवाद |

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