For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साझा कौम (लघुकथा)

छोटा सा कस्बाई शहर जो बड़ी सिटी बनने की होड़ में अपनी तरुणाई छोड़ व्यस्क होने लगा था । जिसकी छाती पर स्वहस्ताक्षरित ठप्पा ये झुग्गी बस्ती थी जो अमूमन अब हर बड़े शहर की पहचान बन चुकी है ।
कुल जमा ढ़ाई सौ बीपीएल कार्डधारियों की बसाहट जिनकी हर सुबह भूख को जीतने की अथक कोशिश , शाम को एक उम्मीद के साथ ढल जाया करती थीं । इधर पिछले कुछ दिनों से इस शहर मे भी खूब जलसा - जुलूस होने लगें थे । एक अस्थायी रोजगार का सुनहरा अवसर ....
" हाफिज , रहमान , सलीम, केशव और मुन्ना ! जल्दी करो , समय हो गया । हमे पहले ग्राउंड मे पहुंचना है । फातिमा बाजी , इनके चेहरे पर गेरूआ अच्छी तरह मलना और वो झंडे इस तरह इनके कपड़ो पर टांको की सिर्फ गेरूआ झंडा हीं दिखे । "
सभी को निर्देश देता इस मंडली का सरपंच कैलाश थोड़ा सकपका कर चुप हो गया क्योंकि सामने हीं चिंतित नज़मा चाची आ खड़ी हुई थीं ।साथ मे कैलाश की माँ भी थी ।
" बेटा , ये खतरनाक है । कहीं इन धर्म के ठेकेदारों को भनक लग गयी तो ...फिर हमारा कौम ...हमारा खुदा ..." भय से कांप उठीं वो ।
" हाँ , बिटवा ऐसा न हो की हम गरीबन को जान के लाले पड़ जाए..." कैलाश की माँ बोली ।
" अरे माई ! कौन धर्म और कैसा ठेकेदार ? ये झंडा लगा के हलक फाड़ने के पांच - पांच सौ रूपये मिलेंगे हम सभी को और अभी पिछले महीने हीं तो फतवा अलि की नुमाइंदगी करने गये थे हम हरियाली बन्ना बनकर । सुनो चाची , हम गरीब गुरबों का एक हीं साझा कौम है... भूख , और खुदा भी एक है... रोटी !"
कैलाश मुस्कुरा कर फातिमा बाजी के हाथ से नमक लगी रोटी झपटता सभी को साथ लिए ग्राउंड की ओर निकल पड़ा...

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 839

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aparajita on February 12, 2017 at 11:08pm
आदरणीया अर्चना दीदी , आपकी सराहना से हिम्मत मिली ...आपका सादर आभार एवं धन्यवाद
Comment by Aparajita on February 12, 2017 at 11:06pm
आदरणीया प्रतिभा दीदी , आपकी टिप्पणी से मनोबल बढ़ा की मेरा प्रयास सही दिशा मे है । सादर आभार एवं धन्यवाद ....
Comment by Aparajita on February 12, 2017 at 11:04pm
आदरणीय रवि सर , लेखन के इस छोटे से सफर में आपकी ये टिप्पणी मेरे लिए एक स्वर्णिम पारितोषिक है ...सादर आभार एवं हार्दिक धन्यवाद ...इस मंच की गरिमानुरूप अपनी लेखनी को संवार सकूं और आद० योगराज सर जी की * तेवर और कलेवर * को आत्मसात कर सकूं तथा सभी गुणीजनों से इस विद्या की गहराई को समझ सकूं ..बस यही कोशिश रहेगी मेरी ।
Comment by pratibha pande on February 12, 2017 at 9:49pm

//अरे माई ! कौन धर्म और कैसा ठेकेदार ? ये झंडा लगा के हलक फाड़ने के पांच - पांच सौ रूपये मिलेंगे हम सभी को और अभी पिछले महीने हीं तो फतवा अलि की नुमाइंदगी करने गये थे हम हरियाली बन्ना बनकर । सुनो चाची , हम गरीब गुरबों का एक हीं साझा कौम है... भूख , और खुदा भी एक है... रोटी !"//  वाह ...वाह ..और बस वाह के अतिरिक्त इस लघु कथा के बारे में कुछ भी  कहने को शब्द नहीं हैं ...बधाई आदरणीया अपराजिता जी  
.

Comment by Ravi Prabhakar on February 12, 2017 at 6:34pm

आदरणीय अपराजिता जी, बहुत ही सधी हुई लघुकथा कही है आपने । शुरूआत से अंत तक पाठक को पूरी तरह बांधे रखने में सक्षम इस लघुकथा के लिए आपको दिल से बधाईयां अर्पित हैं।

लघुकथा की शुरूआत /छोटा सा कस्बाई शहर जो बड़ी सिटी बनने की होड़ में अपनी तरुणाई छोड़ व्यस्क होने लगा था । जिसकी छाती पर स्वहस्ताक्षरित ठप्पा ये झुग्गी बस्ती थी जो अमूमन अब हर बड़े शहर की पहचान बन चुकी है ।/ बहुत ही सधे तरीके से हुई है। 'तरूणाई छोड़ व्‍यस्‍क होने....../ प्रतीको के प्रयोग का अद्भुत उदाहरण, वाह !  /सुबह भूख को जीतने की अथक कोशिश , शाम को एक उम्मीद के साथ ढल जाया करती थीं/ एक पंक्‍ित में वो सब कुछ इस कुशलता से बयां किया गया जिसके लिए उपन्‍यास तक लिखे गए । कथा की शुरूआत में ही एक मंझे व कुशल लघुकथा की झलक दिखाई दे रही है। गेरूआ रंग, हरियाली बन्‍ना जैसे प्रतीकों का प्रयोग भी लेखकीय कौशल की झलक सहजता से प्रस्‍तुत कर रहा है। और लघुकथा का अंत /सुनो चाची , हम गरीब गुरबों का एक हीं साझा कौम है... भूख , और खुदा भी एक है... रोटी !"/ किसी भी संवेदनशील पाठक की चेतंनता को अवश्‍य झंझकोरता है। ओवरऑल यह एक सधी व प्रभावशाली लघुकथा है । इस मंच पर यह आपकी बेशक दूसरी कथा है और परन्‍तु आपमें असीम संभावनाएं नज़र आती हैं। मैं अपनी ओर से आपको भविष्‍य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित करता हूं । सादर

Comment by Archana Tripathi on February 10, 2017 at 10:33pm
जिनके पेट भरे होते हैं उन्हें जाति धर्म सूझता हैं।पेट की आग बुझाने की जदोजहद करते रहने वाले को जाति धर्म से क्या लेना देना को चरितार्थ करती बढ़िया कथा के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Aparajita on February 10, 2017 at 8:36pm
आदरणीय आरिफ सर , बहुत बहुत धन्यवाद आपकी टिप्पणी के लिए ...रचना पर समय देने के लिए सादर आभार ....
Comment by Aparajita on February 10, 2017 at 8:33pm
प्रिय राहिला जी , आपकी उपस्थिति और टिप्पणी से हिम्मत मिली ...बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by Aparajita on February 10, 2017 at 8:31pm
आदरणीय कबीर सर , नमस्ते ! मेरी रचना पर समय देने के लिए हार्दिक आभार एवं सकारात्मक टिप्पणी के लिए सादर धन्यवाद ...
Comment by Aparajita on February 10, 2017 at 8:24pm
आदरणीय उस्मानी सर , आपकी सकारात्मक टिप्पणी से बल मिला ...सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई.  //व्यावहारिक रूप में तो चाँद…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service