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ग़ज़ल- बस नज़र क्या मिली हो गया आपका

212 212 212 212
याद आता रहा सिलसिला आपका ।
बस नज़र क्या मिली हो गया आपका ।।

आपकी सादगी यूं असर कर गई ।
रेत पर नाम मैंने लिखा आपका ।।

इश्क़ की जाने कैसी वो तहरीर थी ।
रातभर इक वही खत पढ़ा आपका ।।

है सलामत अभी तक वो खुशबू यहां ।
गुल किताबों से मुझको मिला आपका ।।

वक्त की भीड़ में खो गया इस कदर ।
पूछता रह गया बस पता आपका ।।

इक ख़ता जो हुई भूल पाया कहाँ ।
यूं अदा से बहुत रूठना आपका ।।

बात शब् भर चली हिज्र तक आ गई ।
फर्ज था वस्ल तक जोड़ना आपका ।।

टूट कर सब बिखरते गए हौसले ।
था ज़माना गज़ब था खुदा आपका ।।

जख़्म गहरा हुआ ,हो गया फिर सितम ।
इस तरह हाल फिर पूछना आपका ।।

होश खोने गया मैकदे में तभी ।
दे गया कोई फिर वास्ता आपका ।।

- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 12, 2017 at 8:57pm
आ0 सुरेन्द्र नाथ सिंह कुश क्षत्रप जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 8:12pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी सादर अभिवादन, बेहतरीन ग़ज़ल हुई, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ । सादर
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 12, 2017 at 7:27pm
आ0 कबीर सर हार्दिक आभार के साथ नमन ।
Comment by Samar kabeer on February 12, 2017 at 7:26pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 12, 2017 at 11:19am
आदरणीय मुहम्मद आरिफ साहब तहेदिल से शुक्रिया।
Comment by Mohammed Arif on February 12, 2017 at 10:14am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल कही आपने । शे'र दर शे'र दाद क़ुबूल करें ।

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