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ग़ज़ल (प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम)

ग़ज़ल (प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम)

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प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम,
जान ले लो न पर सताओ तुम।

पास आ के जरा सा बैठो तो,
फिर गले चाहे ना लगाओ तुम।

दिल को समझाना है बड़ा मुश्किल,
बेरुखी और ना दिखाओ तुम।

गिर गया हूँ मैं खुद की नज़रों से,
और नज़रों से मत गिराओ तुम।

चोट खाई बहुत जमाने से,
यूँ बहाने न फिर बनाओ तुम।

मिल सका वो न जिस को भी चाहा,
अनबुझी प्यास को बुझाओ तुम।

इल्तिज़ा ये 'नमन' की आखिर है,
अब तो उजड़ा चमन बसाओ तुम।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 15, 2017 at 9:40am
जनाब मोहम्मद आरिफ जी आपकी इस हौसला आफजाई का तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on February 14, 2017 at 5:49pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
छटे शैर के ऊला मिसरे को व्याकरण के हिसाब से देखिये ।
Comment by Mohammed Arif on February 14, 2017 at 5:27pm
आदरणीय वासुदेव जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल ।शे'र दर शे'र दाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें ।

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