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रिश्तों में गर रार करोगे (तरही गजल)

22 22 22 22

रिश्तों में जब रार करोगे
कुनबा अपना ख्वार करोगे ||

पैर तुम्हारा बच पायेगा?
राहें गर पुर खार करोगे ||

जाति धर्म पर वोट दिया तो
मत अपना बेकार करोगे ||

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सब इक, कब स्वीकार करोगे? ||

लोकतंत्र के तुम प्रहरी हो
भ्रष्ट तंत्र पर वार करोगे? ||

राजनीति बूढों से बोली
*हमसे कितना प्यार करोगे?* ||

धन के साथ बँटेगा दिल भी
जो ऊंची दीवार करोगे ||

चीर हरण फिर कोई करेगा
मर्यादा जो तार करोगे ||

'नाथ' कुँए में भांग पड़ी है
कैसे बेड़ा पार करोगे ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Gurpreet Singh jammu on February 23, 2017 at 8:28pm
बहुत बढ़िया सुरेन्द्र जी...
Comment by Mohammed Arif on February 22, 2017 at 5:19pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी आदाब, छोटी बह्र की बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र कुछ कहता है । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 22, 2017 at 3:30pm
अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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