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आदरणीय महेन्द्र जी, आपकी प्रस्तुति अभिधात्मक होने के कारण वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाई, जैसा ऐसे विशिष्ट विषयों पर आधारित रचनाओं से अपेक्षा की जाती है. आपने एक विचार तो शाब्दिक तो कर दिया किन्तु बिम्ब, प्रतीकों और व्यंजनात्मकता की कमी ने कविताई को प्रभावित किया है. शब्द जब सीधे सपाट होते हैं तो अपेक्षित ध्वन्यार्थ नहीं निकल पाता है जिसकी ये विषय अपेक्षा रखते हैं. इसलिए शिल्प आधार पर और कसावट की आवश्यकता है. जहाँ तक इस विषय की बात है तो इसको लेकर वैचारिक मतभेद है ही. अब तो लगता है जैसे इस विषयों पर स्पष्ट दो पक्ष बन गए हैं. इसलिए इस बारे में मैं कुछ नहीं कहूँगा. मैं आपने विषय से पूरी तरह से न तो सहमत हो सका हूँ और न ही असहमत. क्योकिं अभी विषय पर एक पक्षीय विचार प्रस्तुत हुआ है, दूसरा पक्ष भी तनिक उभरता तो यह एक संतुलित और प्रभावकारी प्रस्तुति हो जाती. वास्तव में गंभीर विषय इंगितों की अपेक्षा रखते हैं. संकेत ख़ुद बोलते हैं फिर कवि को नहीं कहना पड़ता और न समझाना पड़ता है. ऐसे विषयों पर कलम चलाने का साहस दिखाया आपने, यह बड़ी बात है लेकिन उससे भी अधिक आवश्यक है ऐसे विषयों को शब्द चातुर्य से निभा जाना. बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
सभी साथियों से निवेदन है कि रचना पर टिप्पणी करें न कि क्यूँ, कब, कैसा..कहाँ आदि पर ....
लेखक की स्वतंत्रता का हनन न please ..
विषय से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है ..
...
रचना नवीनता लिये हुए है.. मुझे पसंद आयी..
सादर
आदरणीय , मेरा कहना इतना है कि केवल एक साइट मे कुछ पढ के आप ऐसे गंभीर और खतरनाक विषय मे एक तरफी बात कैसे लिख सकते हैं , ... क्या आपको मालूम है कि नेट की बातों पर भरोसा के लायक है , इतनी विशवनीय है कि आप उस पर ऐसी रचना कर सकें ..... जिस पर आपको ही कहना पड़े कि मै .. इनके लिये नही उनके लिये कह रहा हूँ ... । भाई जी एक बात समझनी ज़रूरी है कि आपके अधिकार कुछ कह देने तक ही है ... उसे क्या समझा या न समझा जाये ये पढने वालों पर निर्भर होता है ... क्यों कि स्वतंत्र पाठक भी होते हैं ... मुझे लगता है गम्भीर विषयों पर इंगितों से बात कही जानी चाहिये । वैसे आप स्वतंत्र हैं ।
आ. महेंद्र कुमार जी यदि आपकी यह कविता किसी खास घटना के परिप्रेक्ष्य में नहीं है तो बहुत अच्छी कविता है। अभी कुछ महीने पहले मैंने एक खबर पढ़ी थी एक बंदे को पुलिस आतंकवादी कहकर उठा ले गई थी 23 वर्ष जेल में रहने के बाद यह साबित हुआ था कि वो आतंकवादी नहीं है उसकी ज़िन्दगी का बेशकीमती वक्त बरबाद हो गया उसकी ज़िन्दगी बरबाद हो गई, ये भी एक कड़वा सच है; दुर्भाग्य से कोई इसे देखना नहीं चाहता। आपकी कविता की विषय वस्तु इस सच की तरफ भी इशारा करती सी लग रही है। हमें अपने सुरक्षा बलों का समर्थन करना चाहिए और वे ग़लत करते हैं तो उसका विरोध भी करना चाहिए, सिर्फ अपनी नाकामी छुपाने के लिए भी कई बेगुनाहों के साथ ग़लत किया गया है, जो कि सर्वथा ग़लत है। आपने बेबाकी से अपनी बात रखी बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय यही सब कल यू पी मे भी हुआ है , मुझे क्या समझना चाहिये आप ही बतायें .... आपकी रचना को पढने के बाद ? क्या आपको ऐसा नही लगता कि आपकी रचना एक पक्षीय सच को उजागर कर रही है ? या आप भी वहीं खड़े हैं जहाँ सारे पत्थर बाज खड़े हैं ? आपकी रचना दूसरी किसी सम्भावना की ओर इशारा भी नही कर पा रही है ... जो एक ज़हरीला सच है ।
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