प्रतिशोध - लघुकथा –
"मोहन बाबू, पूरा मोहल्ला बाहर होली खेल रहा है। आप सारे परिवार के साथ घर में ही हैं"।
" सुखराम जी, हम लोग होली नहीं खेलते"।
"कोई खास कारण"?
"हाँ, कुछ ऐसा ही समझ लीजिये"।
"अगर बुरा ना लगे तो क्या मैं जान सकता हूँ"?
"पूरा मोहल्ला जानता है, आप भी जान जाओगे, अभी नये नये आये हो"।
"क्या आप को बताने में ऐतराज़ है"?
"ऐसी तो कोई बात नहीं है, आइये"।
दोनों पड़ोसी बैठ गये।
"सुखराम जी मेरी तीन बेटियाँ थीं। सबसे बड़ी पल्लवी बी एड कर रही थी। मोहल्ले का एक लड़का उसे तंग करता था। उसके माँ बाप से बात की ,कोई हल नहीं निकला। उसकी शैतानियाँ और बढ़ गयीं।
आखिरकार हम थाने चले गये। उन्होंने भी कोई सख्त कदम नहीं उठाया। उससे एक माफ़ीनामा लिखवा कर चेतावनी देकर भगा दिया।
उसी साल होली पर हम सब घर के बाहर बैठे थे। तभी रंगों से सराबोर, चेहरे पुते हुए, कुछ लड़कों का झुंड आया। सभी को रंग और गुलाल लगाने लगे। भीड़ भाड़ में एक लड़के ने पल्लवी के चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया। वह चीखने लगी। हम लोग उसे संभालने लगे ,इसी बीच मौका पाकर लड़के भाग गये। पल्लवी का लंबा इलाज़ चला। उसकी एक आँख चली गयी। पूरा चेहरा बिगड़ गया। उसी लड़के के नाम से पुलिस केस हुआ, लेकिन सब बेकार। बिना चश्मदीद गवाह वह छूट गया।
एक दिन पल्लवी अस्पताल से आ रही थी तो उसको फ़िर धमकी दे गया कि अब तेरी बहिनों का भी यही हाल करूंगा। हमने फ़िर थाने जाने का सोचा पर पल्लवी ने नहीं जाने दिया। उसने कहा कि अब उसका इलाज़ वह खुद ही करेगी| उसके मन में क्या चल रहा था हम नहीं जान पाये।
कुछ समय बाद होलिका दहन वाले दिन पल्लवी होली देखने घर से निकल गयी। वह हमेशा मुँह पर कपड़ा बांध कर रहती थी| वह लड़का भी वहीं होली के पास शराब के नशे में धुत्त बैठा था। पल्लवी ने पता नहीं किससे एक बोतल शराब मंगाली। पल्लवी ने पूरी बोतल शराब उसके ऊपर उड़ेल दी। वह हड़बड़ाकर जैसे ही उठने लगा, पल्लवी उसे बाँहों में भर कर होलिका दहन में गिर पड़ी। उस लड़के की दर्दनाक़ चीखों तथा पल्लवी के अट्टहासों से सारा प्रांगण गूंज उठा"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय उमा विश्वकर्मा जी।
बधाई हो तेज वीर सिंह जी, हक़ीकत के क़रीब लघुकथा बहुत ही मार्मिक है | किंतु ये विषय ऐसी मानसिकता का है, जो हमारे सभ्य समाज के लिए अभिशाप बनता जा रही है | कुछ दिन का सोर, फिर शांति -------?
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार । मै अदरणीय आरिफ जी के कथन से पूरी तरह सहमत हूँ । हमारे क़ानून इतने सख़्त नहीं हैं जिसका फायदा उठाकर तेज़ाब हमले के अपराधी छूट जाते हैं । इसलिए लड़कियों को खुलकर सामने आने की आवश्यकता है । उन्हें स्वयं आत्म हत्या जैसा क़दम न उठाकर आत्म रक्षा के गुर सीखना चाहिए और अपराधियों को दंड दिलाने के लिए तत्पर होना चाहिए । बहुत अच्छी लघुकथा । बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी।आपको भी होली की बधाई एवम शुभ कामनायें।
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी।आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूं।इंसान आत्म हत्या जैसा कदम उसी सूरत में उठाता है जब उसे सारे रास्ते बन्द मिलते हैं।आपको भी होली की बधाई एवम शुभ कामनायें।
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