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"तरही ग़ज़ल , जनाब रवि शुक्ल साहिब की नज़्र"

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

पहले अपनी रूह का ये मक़बरा रोशन करें
और इसके बाद हम सोचें कि क्या रोशन करें

गर मयस्सर घी नहीं है,तेल का रोशन करें
मन्दिर-ओ-मस्जिद में जाएँ इक दिया रोशन करें

ये हमारी ज़िम्मेदारी है, हमारा फ़र्ज़ भी
नाम अपने बाप दादा का सदा रोशन करें

नफरतों के इन अँधेरों को मिटाने के लिये
हम चराग़ उल्फ़त के यारो जा ब जा रोशन करें

याद कर के नज़्म 'हाली'की,ज़ईफ़ा की तरह
झुटपुटे के वक़्त मिट्टी का दिया रोशन करें

आम कर दीजे 'ज़फ़र' साहिब के इस पैग़ाम को
"इक दिया जब साथ छोड़े, दूसरा रोशन करें

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 6:01pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 5:59pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 5:58pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 5:57pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2017 at 3:29pm

आ. तस्दीक़ साहब,
दूसरा  शेर ..हुस्न-ए-मतला है ...  अत: तेल का ही आयेगा ... तेल को कहने से क्या हासिल होगा?...
सानी   मिसरे में दिये का ज़िक्र है जो बात मुकम्मल कर रहा है ..
सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:50am
आद0 समर साहब सादर प्रणाम, बहुत उम्दा ग़ज़ल। मतला का क्या कहना और गिरह का तो जबाब नही। आपकी सोच को नमन। बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए।
Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:49am
आद0 समर साहब सादर प्रणाम, बहुत उम्दा ग़ज़ल। मतला का क्या कहना और गिरह का तो जबाब नही। आपकी सोच को नमन। बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए।
Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:49am
आद0 समर साहब सादर प्रणाम, बहुत उम्दा ग़ज़ल। मतला का क्या कहना और गिरह का तो जबाब नही। आपकी सोच को नमन। बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 11, 2017 at 10:31pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है दाद के साथ
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ -------शेर 2 के उला मिसरे में बात साफ नहीं हो पाई
''गर मयस्सर घी नहीं है,तेल का रोशन करें '' या तेल को रोशन करें -----सादर

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 5:56pm

आली जनाब समर साहब आदाब सबसे पहले तो आपके तहे दिल से मशकूर ओ ममनून हूँ कि आपने मुझा नाचीज को अपनी गलज नज्र की इस नवाजिश के लिये तहे दिल से शुक्रिया ये नजराना मेरे लिये बहुत मायने रखता है आपकी मुहब्‍बतों के लिये बहुत बहुत शुक्रिया । स्‍नेह ऐसे हीबनाए रखें ।

और गजल की बात करें इस मिसरे पर बहुत ही मश्‍क की है हमने भी तो इसकी बहर और रदीफ से दो चार हुए है । आपने जिस खूबसूरती से जफर साहब की जमीन पर मतला और दीगर अश्‍आर कहें है वो काबिले तारीफ है गिरह ही सादगी बरबस ही ध्‍यान खींचती है । इस बाकमाल गजल के लिए आपको दिली मुबारक बाद और दाद पेश करते है । सादर

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