For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

*221 1221 1221 122

-------------

सबसे न बताओ के परेशान यही है ।
आशिक़ हूँ यकीनन मेरी पहचान यही है ।।

यूँ ही न् गले मिल तू जरा सोच समझ ले ।
इस शह्र के हालात पे फरमान यही है ।।

कहने लगी है आज से मुझको भी सरेआम ।
ठहरा है जो मुद्दत से वो मेहमान यही है ।।

बर्बाद गुलिस्तां को सितम गर ने किया जब।
लोगो ने कहा प्यार का तूफ़ान यही है ।

अक्सर ही नकाबों में छुपाते हैं ये चेहरा ।
बैठा जो तेरे हुस्न पे दरबान यही है ।।

लाती हैं हवाएं मेरे महबूब की खुशबू ।
शायद मेरी तक़दीर में बागान यही है।।

ठहरो किसी दीवाने को मुजरिम न् बनाओ ।
मिलता जो मुहब्बत से वो इंसान यही है ।।

मौलिक अप्रकाशित

नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 495

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on May 22, 2017 at 9:10am

आदरणीय नवीन जी, अच्छी ग़ज़ल है आपकी. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by Ravi Shukla on May 18, 2017 at 2:29pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी  अच्छी ग़ज़ल ।  मुबारकबाद क़ुबूल करें

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2017 at 5:40pm
आ0मुहम्मद आरिफ साहब शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2017 at 5:39pm
आ0 समर कबीर सर सादर नमन । आपके आदेश का अवश्य पालन होगा ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2017 at 5:38pm
आ0 सतविंद्र कुमार जी विशेष आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2017 at 5:37pm
आदरणीय विजय निकोरे साहब आभार ।
Comment by vijay nikore on May 16, 2017 at 1:55pm

//ठहरो किसी दीवाने को मुजरिम न् बनाओ ।
मिलता जो मुहब्बत से वो इंसान यही है ।।//

वाह, वाह । बहुत खूब। अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2017 at 6:52pm
आदरणीय नवीन मणि जी हार्दिक बधाई स्वीकारें इस उम्दा गजल के लिए!
Comment by Samar kabeer on May 15, 2017 at 6:00pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
एक निवेदन ये है कि दूसरे रचनाकारों की रचनाओं पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी दिया करे तो बहतर होगा । आज कल तो ओबीओ पर कुछ पुराने सदस्यों को भी जब अपनी ग़ज़ल पोस्ट करना होती है तो दो चार रचनाओं पर अपनी सक्रियता दिखा देते हैं और फिर जब ग़ज़ल पर प्रतिक्रयाएँ आना बंद हो जाती हैं तो ग़ायब हो जाते हैं और फिर नई रचना के साथ आ जाते हैं ।उम्मीद है मेरे निवेदन को स्वीकार करेंगे ।
Comment by Mohammed Arif on May 15, 2017 at 5:47pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service