For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शुरूआत (लघुकथा)

“भाभी जल्दी आइये देखिये ‘साथी डॉट कॉम’ पर कितने उत्तर आये हैं|”

“अरे क्या करती हैं बड़े लोग देखेंगे,सुनेंगे तो क्या सोचेंगे |”

“खुश होंगे भाभी, सब चाहते हैं कि आप फिर से एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करें |”

“सालों पहले मुझे सफ़ेद साड़ी से रंगीन साडी पहनाने में, कितने पापड़ बेले थे आपने, भूल गयी क्या, जो अब ये नया काम करने जा रही हैं |”  

“पर मैं सफल हुई ना|थोड़ा सा आत्मविश्वास की ज़रूरत है बस |केदारनाथ के हादसे को हुए भी १२ साल बीत गए हैं ,भाई व बच्चों को तो वापिस नहीं ला सकती पर आप दूसरों को तो सहारा दे सकती हैं|”

“नहीं नहीं बस अब मैं और मेरा काम, ज़िन्दगी आराम से बड़ों की छत्रछाया में निकाल लूंगी |”

“आप पापा मम्मी के सफ़ेद पड़ते हुए चेहरों को नहीं देख रही हैं| वे लोग भी कितने दिन के हैं आखिर? आपके लिए अच्छा सा घर चुनकर वे भी सुकून में रहेंगे|”

“पिछले एक दशक में मेरे बाल भी काले से सफ़ेद हो गए है अब मुझे कोई डर नहीं रह गया है |”

“यही तो मैं कह रही हूँ बिना डरे, बिना रुके, नई ज़िन्दगी की शुरूआत कीजीये| बालों की सफेदी आपको और आपके व्यक्तित्व को और भी गरिमामय बना रही है |आप जैसे और भी अच्छे लोग हैं, बात तो कीजीये ,राहें अपनेआप खुलती जायेंगी|”

“आपको लगता है कि इतने समय के बाद इस दिशा में बढ़ना आसान है क्या?बड़ी मुश्किल से तो इस जिन्दगी से सामंजस्य बैठा पाई हूँ और आप कह रहीं हैं कि फिर नए सिरे से शुरूवात करो, वो भी अनजानों से |मेरी छोडिये ,मम्मी पापा के बारे में सोचिये मेरा मुंह देखकर ही, वे जी रहे हैं |सच पूछिए तो उनका सहारा न होता तो मैं अपने पैरों पर खडी भी ना हो पाती |नई शुरूआत करना चाहती हूँ ,ये तो मैं शायद पूछ ही ना पाऊं|”

“जैसे  पूछने की झिझक आपको है वैसे ही बताने की झिझक उनको भी है| आपको बस कदम बढ़ाने की आवश्यकता है |जिम्मेदारियों से वे कभी पीछे नहीं हटे है|” “कोई जल्दी नहीं है आराम से मेरी बात पर गौर करिए ,बातचीत करिए| नई पारी की शुरूवात करने की सोचिये तो सही ,सब आपके साथ हैं|”

“ये छोटी- मोटी बात नहीं है अपने और पराये दोनों तरफ के लोगों की जिन्दगियों का सवाल है|”   

“अपने तो अपने हैं ही और परायों को अपनाना व अपना बनाना आपको बहुत अच्छी तरह आता है|इसमें आप जरूर सफलता पाएगी ये मैं दावे के साथ कह सकती हूँ |पिछले एक दशक में खाली मन ही है जो नहीं बदला है| सूचना प्रचार प्रसार तंत्र ,नई तकनीक,बड़े बूढों का अनुभव व पारखी आँखें,सब कुछ तो है आपके पास ,सबका संयोजन करके आगे बढ़ने की आवश्यकता है| फिर मैं तो हूँ ही |      

कहकर व सुनकर ननद भाभी दोनों की आँखें भर आई |

मौलिक व अप्रकाशित 

 

Views: 613

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 8:42pm
विधवा विवाह को प्रोत्साहित करती बढ़िया प्रस्तुति। सादर हार्दिक बधाई आदरणीय मनीषा सक्सेना जी। इस विषय पर अन्य रचनाएं भी लिखी जा चुकी हैं।
Comment by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:20am

आ.रविजी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ ,आगे से ज्यादा ध्यान रखने की कोशिश करूंगी |

Comment by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:17am

कबीर जी व विजय जी धन्यवाद |

Comment by Ravi Prabhakar on July 24, 2017 at 1:25pm

आदरणीय मनीषा जी मुझे ये तो एक द़श्‍य का वर्णन मात्र ही लगा, उसमें लघुकथा का कोई फ्लेवर नज़र नहीं आया । सादर

Comment by vijay nikore on July 24, 2017 at 12:07am

लघु कथा अच्छी लिखी है। बधाई।

Comment by Samar kabeer on July 23, 2017 at 6:06pm
मोहतरमा मनीषा सक्सेना जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Manisha Saxena on July 23, 2017 at 5:27pm

धन्यवाद कल्पना जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2017 at 7:23pm

अच्छी कथा हुई है आदरणीया मनीषा सक्सेना जी | बधाई आपको | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
42 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
3 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service