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वाह वाह लाजबाब
चढ़े इक बार जिस पर फिर न उतरे
महब्बत का तू ऐसा रंग हो जा
वाह आदरणीय समर कबीर साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल है। हार्दिक बधाई सर। सर ये महब्बत कहीं मोहब्बत तो नहीं ?
आदरणीय समर सर जी,,, एक और उम्दा ग़ज़ल के लिए आपको ढेरों ढेर बधाई
आदरणीय समर साहब बहुत ही खूबसूरती से आपने अपनी बात गजल के अश्ाआर में कही है हर शेर नायाब है सामान्य से लगने वाले कवाफी के निहायत ही उम्दा इसतेमाल ने उन्हे खास बना दिया कुछ नये अल्फाज भी जानने को मिले । इस गजल के लिये शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करें । सादर
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