16 मात्रा आधारित गीत (चोपाई छन्द आधारित )
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कोमल स्पंदन मन चिर उन्मन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन
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किसलय पुंजित ह्रदय हुलसित
उत्कंठा इंद्रजाल पुलकित
नित भोर भये चिर कोकिल-रव
मधु कुंज कुंज गुंजित कलरव
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रे गंध युक्त मसिमय अंजन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन
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घनघोर घटा चितचोर विहग
नभ अंतःपुर द्युतिमान सुभग
अकलुष प्रदीप्त कोमल उज्ज्वल
तप नेह वेदना में प्रतिपल
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रे स्वर्ण स्वर्ण हो व्याकुल मन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन
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उन्मत्त भोर भीगी मुकुलित
उद्विग्न है संध्या तट कुसुमित
आसक्त मौन उत्कंठातुर
चल रे चल आतुर मन निष्ठुर
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रे रीत मुक्त प्रीती बंधन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन
.
कोमल स्पंदन औ चिर उन्मन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन
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"मौलिक व अप्रकाशित"
चिर--जो बहुत दिनों तक बना रहे ,, उन्मन --(हठयोग) ,,,,,भौंर - भ्रमर , भंवरा
उत्कंठा-- उत्सुकता , ,,विहग --चाँद ,
पुलकित -रोमांच ,..,पुंजित --संचित
सुभग --सुंदर; मनोहर
मुकुलित--अधखिली ,,,, कुसुमित-- उल्ल्सित
उद्विग्न--व्याकुल ,,,,, विहान--भोर , नहान
मसिमय--स्याह
Comment
जी, आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार। बहुत कोशिश करी पर सुधार नहीं कर पाई। कोई और शब्द बाकि पंक्तियों को बिगाड़ रहे है। सादर
आदरणीया sunanda jha जी आपका धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई , आभार सादर ।
आ० अलका ललित जी , विहग का अर्थ गगनचर होता है इस लिहाज से संभव है किसी , कोष में इसका एक अर्थ चंद्रमा भी हो परन्तु यह अर्थ प्रचलन में नहीं है , अप्रचलित अर्थ प्रयोग से बचना चाहिए . सादर .
जी आदरणीय Samar Kabeer ji , मार्गदर्शन के लिए आभार ,सादर ।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी आपका धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई , सुधार की कोशिश जरूर करूंगी , आभार सादर ।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,बहुत बहुत आभार आपका ,मेरे अल्प ज्ञान व् बहुत सी त्रुटियों के बावजूद आपने मेरी रचना को सराहा।
सभी शब्दों के अर्थ गूगल से देखे है... विहग पक्षी और चन्द्रमा दोनों दिखाया गया है। अभी बहुत सीखना है मुझे, पढ़ती हूँ पर लिखते समय भूल जाती हूँ, सुधार की कोशिश करूंगी , आभार सादर ।
आदरणीय Samar Kabeer जी आपका धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई , आभार सादर ।
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