2122 1212 112/22
गर अँधेरा है तेरी महफिल में
हसरत ए रोशनी तो रख दिल में
खुद से बेहतर वो कैसे समझेगा ?
सारे झूठे हैं चश्म ए बातिल में
क़त्ल करने की ख़्वाहिशों के सिवा
और क्या ढूँढते हो क़ातिल में
बेबसी, दर्द और कुछ तड़पन
क्या ये काफी नहीं था बिस्मिल में ?
फ़िक्र क्या ? बाहरी जिया न मिले
रोशनी है अगर तेरे दिल में
कोई तो कोशिश ए नजात भी हो
अश्क़ बारी के सिवा मुश्किल में
साहिलों सा नही है साहिल अब
कोई तूफाँ छिपा है साहिल में
प्यार का क्या सबूत दूँ उनको
ज़ह’न के जो बसे हैं तिल तिल में
हर तगाफ़ुल मिला जो तुमसे मुझे
जुड़ गया ज़िन्दगी के हासिल में
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, बेहद खूबसूरत गजल के लिए बहुत बधाई । सादर ।
आदरनीय आशीष भाई , आपको ओबीओ मे देख कर सुखद अनुभूति हुई ... स्वागत है आपका । गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से बधाइयाँ ।
आदरनीय अरुण भाई , आपको फिर से सक्रिय देख कर अच्छा लगा । ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय रवि भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।
आ. मो. आरिफ भाई , गज़ल की सराहना के ल्लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय गिरिराज जी, बेहद खूबसूरत गजल. बधाइयाँ.
साहिलों सा नही है साहिल अब
कोई तूफाँ छिपा है साहिल में.........ख़ास दाद कबूल कीजिये.
आदरणीय गिरिराज भाई जी बहुत बढि़या गजल कही आपने मुबारक बाद पेश है । सादर
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