For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझे कुछ और करना है, तुम्हें कुछ और पाना है
मुझे इस ओर जाना है, तुम्हें उस ओर जाना है

कि अब मुमकिन नहीं लगता
कभी इक ठौर बैठें हम
हमें मंजिल बुलाती है, चलो अब अलविदा कह दें....

जहाँ संबोधनों के अर्थ भावों को न छू पाएं
वहाँ सपने कहो कैसे सहेजें और मुस्काएं ?
चलो उस राह चलते हैं जहाँ हों अर्थ बातों में
स्वरों में प्राण हो जिसके मुझे वो गीत गाना है....
बहुत मुश्किल हुआ मन में 
घुटन को घोल कर हँसना 
घुटन जब-तब रुलाती है, चलो अब अलविदा कह दें....

मुझे मालूम है मुश्किल बहुत है दूर हो पाना
मगर कुछ आदतों का अब ज़रूरी है बदल जाना,
तुम्हें मेरी ज़रुरत है! न मुझसे झूठ कहना तुम 
मुझे खुद हार कर तुमसे तुम्ही को तो जिताना है....
न यूँ अनजान बन कर
और खींचें डोर रिश्तों की
कि डोरी टूट जाती है, चलो अब अलविदा कह दें....

तुम्हें क्या याद है जब तुम धड़कता मौन पढ़ते थे
बहुत से बन्ध उलझन के सुलझते थे उधड़ते थे,
मगर खामोशियाँ अब क्यों सुलगती हैं सिसकती हैं
मुझे इस प्रश्न का उत्तर ज़रा खुद को बताना है....
न चौंको तुम न कुछ बोलो
सरकती साँस की ये लय
सभी सच-सच बताती है, चलो अब अलविदा कह दें....

न मैं अब राह देखूँगी, न अब मुझको बुलाना तुम 
न रूठूँगी कभी तुमसे, न अब मुझको मनाना तुम 
मुझे हर बार बहलाकर यहीं तुम रोक लेते हो
मगर अब खोल दो बंधन मुझे अब दूर जाना है....
हमें उन्मुक्त उड़ना है
न बाँधें इन उड़ानों को
सुबह हमको जगाती है, चलो अब अलविदा कह दें....

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 967

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 12:17pm

जहाँ संबोधनों के अर्थ भावों को न छू पाएं

वहाँ सपने कहो कैसे सहेजें और मुस्काएं ?    क्या बात है , आदरनीया प्राची जी , बहुत बढिया गीत रचना हुई , सच्चाई के क़रीब है बातें । आपको हार्दिक बधाइयाँ

Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:50am
आद0 जनाब समर साहब की बारीक सोच को नमन,रचना में पढ़ने में उससे भाव भी गजब का आ गया।
Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:48am
आद0 प्राची सिंह जी सादर अभिवादन, अंतर्द्वंद को दिखाती बेहद खूबसूरत सृजन पर बधाई।
Comment by Samar kabeer on August 23, 2017 at 11:05am
बहुत बहुत शुक्रिया रवि भाई ।
Comment by Samar kabeer on August 23, 2017 at 11:04am
बहुत बहुत शुक्रिया मेरे कहे को मान देने के लिये ।
Comment by Ravi Shukla on August 23, 2017 at 10:30am

आदरणीय समर साहब कमाल का विजन है आपका

'तुम्हें इस ओर जाना है,मुझे उस ओर जाना है' इस बारीक से अंतर पर आपकी टिप्‍पणी स्‍वागत योग्‍य है आैर संशोधन से भाव में निखार आ गया है । आपका आभार । सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 23, 2017 at 12:42am
शुक्रिया आदरणीय समय कबीर जी
आपने जो परिवर्तन सुझाए बहुत सुंदर हैं और सहर्ष स्वीकार्य है
सादर
Comment by Samar kabeer on August 22, 2017 at 10:09pm
मोहतरमा डॉ.प्राची साहिबा आदाब,बहुत उम्दा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कुछ बारीक बातें बताना चाहूँगा अगर आप समझें :-
'तुम्हें इस ओर जाना है,मुझे उस ओर जाना है'
अगर इस पंक्ति को ऐसा करें तो :-
"तुम्हें उस ओर जाना है,मुझे इस ओर जाना है'
बहुत बारीक फ़र्क़ है, ग़ौर कीजियेगा ।

'न अब मैं राह देखूँगी, न अब मुझको पुकारो तुम'
इस पंक्ति में 'न अब मैं राह देखूँगी'भविष्य की बात
'न अब मुझको पुकारो तुन' आज की बात ,अगर इस पंक्ति को ऐसा करें तो :-
'न अब मैं राह देखूँगी,न अब मुझको बुलाना तुम'
तुकान्तता के हिसाब से नीचे की पंक्ति यूँ कर सकते हैं:-
'न अब उम्मीद होगी ये कि फिर मुझको सजाना तुम'
ध्यान दीजियेगा ।
बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Sushil Sarna on August 22, 2017 at 6:07pm

न मैं अब राह देखूँगी, न अब मुझको पुकारो तुम
न अब उम्मीद होगी ये कि फिर मुझको सँवारो तुम
मुझे हर बार बहलाकर यहीं तुम रोक लेते हो
मगर अब खोल दो बंधन मुझे अब दूर जाना है....
हमें उन्मुक्त उड़ना है
न बाँधें इन उड़ानों को
सुबह हमको जगाती है, चलो अब अलविदा कह दें....

वाह आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी ... अंतर्द्वंद को आपने बहुत ही स्वाभाविक ढंग से चित्रित किया है। इस श्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Ajay Kumar Sharma on August 22, 2017 at 6:03pm
सुन्दर रचना..
बधाई हो.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service