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ग़ज़ल....दुआयें साथ हैं माँ की वगरना मर गये होते-बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222
रगों को छेदते दुर्भाग्य के नश्तर गये होते
दुआयें साथ हैं माँ की नहीं तो मर गये होते


वजह बेदारियों की पूछ मत ये मीत हमसे तू
हमें भी नींद आ जाती अगर हम घर गये होते

नज़र के सामने जो है वही सच हो नहीं मुमकिन
हो ख्वाहिशमंद सच के तो पसे मंज़र गये होते

अगर होती फ़ज़ाओं में कहीं आमद ख़िज़ाओं की
हवायें गर्म होतीं और पत्ते झर गये होते

शिकायत भी नहीं रहती गमे फ़ुर्क़त भी होता कम
न होती आँख 'ब्रज' शबनम अगर कह कर गये होते 
(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 28, 2017 at 7:57pm
बहुत बहुत आभार आदरणीया कल्पना जी..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 28, 2017 at 7:57pm
आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी सुन्दर शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए तहेदिल से शुक्रिया..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 28, 2017 at 7:56pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 28, 2017 at 7:55pm
उचित है आदरणीय समर जी आपकी सलाहनुसार सुधार करता हूँ। मुशायरे में उपस्थिति की कोशिश करता हूँ..हालाँकि मैं उतना लिख नहीं पाता हूँ लेकिन पढ़ने की कोशिश जरूर रहती हैं।मैं कोशिश करूँगा कि अब से कुछ कह सकूँ..सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 28, 2017 at 6:17pm

इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय |

Comment by Mohammed Arif on August 28, 2017 at 2:44pm
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र दमदार । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की सलाह पर गौर करें । मुशायरे में ज़रूर शिरकत करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on August 28, 2017 at 1:41pm
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमायें।सादर
Comment by Samar kabeer on August 28, 2017 at 12:20pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के ऊला मिसरे में 'तक' को जगह 'को' करना उचित होगा ।
दूसरे शैर के ऊला में 'पूँछ' को "पूछ" करलें ।
एक निवेदन ये है कि ओबीओ पर हर माह होने वाले तरही मुशायरे में भी शिर्कत किया करें,अभ्यास के लिये बहुत ज़रूरी है ।

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