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तरही ग़ज़ल - ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ " ( गिरिराज भंडारी )

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नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ

मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ

 

गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें

लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ

 

धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से  

मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ

 

कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम

ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ 

 

कर दफ़्न आ गया हूँ शराफत मैं आज ही

सहता मैं शराफत की नदामत कहाँ कहाँ

 

दानिशवराने कौम की बातें न पूछिये

जुल्मत कदे में ढूँढे हैं जुल्मत कहाँ कहाँ

 

आखें खुली जो रखते कभी पूछते नहीं

''ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ "

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on August 31, 2017 at 4:54am
आदरणीय गिरिराज भाई जी सादर अभिवादन,
बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमायें।
सादर
Comment by ajay sharma on August 30, 2017 at 10:41pm

आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 8:26pm

आदरणीय नीरज भाई , गज़ल पर शिर्कत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 8:25pm

आदरणीय सुशील भाई , ग़ज़ल की मुखर सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 8:24pm

आदरणीय राज भाई , आपकी सराहना के गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 8:23pm

आदरनीय मोहित भाई , गज़ल पर  उपस्थिति और सराहना के लिये आपका आभार ।

Comment by Niraj Kumar on August 30, 2017 at 5:37pm

आदरणीय गिरिराज जी,

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.

सादर

Comment by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 3:08pm

नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ
मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ

गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें
लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ

लाज़वाब ग़ज़ल के लाज़वाब अहसास ... क्या बात है आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब ... नज़र न लगे आपकी कलम को .. हार्दिक बधाई सर

Comment by राज़ नवादवी on August 30, 2017 at 1:13pm

 वाह वाह भाई जी, बहुत खूब, मुबारक. क्या कहने: 

धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से  

मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ

 

कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम

ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ 

सादर 

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