मापनी २२ २२ २२ २२
सुबह के’ मंजर से उजले हो,
दिल को लगते बहुत भले हो.
एक नजर देखा है जब से,
सपने जैसा दिल में’ पले हो.
सारी दुनिया जान गयी है,
तुम तो नहले पर दहले हो
पल पल धूप सही है हमने,
और पले तुम छाँव तले हो.
ताप सहा हमने दर्दों का,
मोम सरीखे तुम पिघले हो.
जिनको भी चाहा दुनिया में,
उनमें तुम सबसे पहले हो.
जम कर बैठ गए हो दिल में,
पल भर को भी कब निकले हो
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय Ram Awadh VIshwakarma जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से
आदरणीय ajay sharma जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से
आदरणीय ajay sharma जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से
जिनको भी चाहा दुनिया में,
उनमें तुम सबसे पहले हो.......WAH WAH
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