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'पार्टियां अभी बाक़ी हैं !' (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी :

'पार्टियां अभी बाक़ी हैं !' (लघुकथा) :

एक दफ़्तर में त्योहार के अवकाश के बाद समोसे-कचौड़ी-आहार-रूपेण बधाईयों का दौर या 'दौरा सा' चला। सब अपने काम फिर से शुरू करने ही वाले थे कि उनमें से एक ने दूसरे से कहा- "कल तो तूने बधाई तक नहीं दी मेरे त्योहार पर! सोशल मीडिया पर मेरे धर्म और रीति-रिवाज़ों की जम कर खिल्ली उड़ा रहा था! उससे तेरे को कोई मेडल या अवार्ड मिल गया क्या?"
"तेरे को मिल गया क्या उन रीति-रिवाज़ों को दोहरा-दोहरा कर?" दूसरे ने कहा।
"तुझे तेरी कट्टरपंथी और पोंगापंथी से मिल गया क्या?" तीसरे ने चीख कर दूसरे से कहा।
"छोड़ो यार, समोसे-कचौड़ी का मज़ा ख़राब मत करो, अपना-अपना काम करो!" कुछ अनहोनी टालने की कोशिश कर चौथे ने उन तीनों को नियंत्रित करने के लिए कहा।
"हां, यार पार्टियों के मज़े लो, ये त्योहार-व्योहार और भाषण तो चलते ही रहते हैं!" उन सब में से एक ने तम्बाकू की पुड़िया मुंह में उड़ेलते हुए कहा। किसी ने सिगरेट फूंकी, किसी ने कोल्ड-ड्रिंक हलक़ में उड़ेला।

(मौलिक व अप्रकाशित)

शेख़ शहज़ाद उस्मानी

[03 सितम्बर, 2017]

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2017 at 8:01pm
समालोचनातत्मक टिप्पणी और मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय डॉ.आशुतोष मिश्रा जी।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 5, 2017 at 9:21pm
आदरणीय शेख जी या रचना के लिए हार्दिक बधाई। आपकी पिछले तमाम रचनाओं की तुलना में यह रचना कुछ कमी के साथ लग रही है । इस बुध पर मेरी जानकारी नहीं है लेकिन आपकीहर लघु कथा पढ़के कुछ न कुछ सिखने की कोशिश जरूर करता हूँ
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2017 at 7:57pm
रचना पर उपस्थित हो कर हौसला अफज़ाई व बेबाक मार्गदर्शक समीक्षाओं व सुझावों के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब और आदरणीय महेंद्र कुमार जी। रचना पर पुनः ग़ौर करूंगा। दरअसल यह सोशल मीडिया पर अभी हाल में चल रही सकारात्मक व नकारात्मक बहसों पर मेरी एक प्रतीकात्मक रचना का प्रयास था। शीर्षक भी इसी कारण ऐसा लिखा था।
Comment by Mahendra Kumar on September 5, 2017 at 4:44pm

आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, लघुकथा अच्छी है किन्तु इसका शीर्षक इसके साथ न्याय नहीं कर रहा है. शीर्षक में संशोधन और थोड़े से संपादन से यह उम्दा लघुकथा हो जाएगी. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2017 at 3:02pm

प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on September 3, 2017 at 6:34pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, अच्छा प्रयास । बधाई स्वीकार करें
Comment by नाथ सोनांचली on September 3, 2017 at 4:46pm
आद0 शहजाद उस्मानी साहब आदाब, मैं आपके लघुकथा का प्रशंशक रहा हूँ, पर इस कथा में वो बात उभर नही पायी जो अन्य दूसरी में होती है। खैर। आपको इस सृजन पर बधाई।

आप मेरी भी प्रथम लघुकथा (नासमझी) पर समीक्षात्मक प्रतिक्रिया दीजिये, ताकि इस विधा में कुछ और अच्छा कर सकूँ।
Comment by Samar kabeer on September 3, 2017 at 11:51am
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,लेकिन आप जो सन्देश देना चाहते हैं वो पूरी तरह उभरकर सामने नहीं आ सका,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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