For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीप रिश्तों का' बुझाया जो', जला भी न सकूँ 
प्रेम की आग की’ ये ज्योत बुझा भी न सकूँ  |

हो गया जग को’ पता, तेरे’ मे’रे नेह खबर 
राज़ को और ये’ पर्दे में’ छिपा भी न सकूँ |

गीत गाना तो’ मैं’ अब छोड़ दिया ऐ’ सनम 
गुनगुनाकर भी’ ये’ आवाज़, सुना भी न सकूँ |

वक्त ने ही किया’ चोट और हुआ जख्मी मे’रे’ दिल 
जख्म ऐसे किसी’ को भी मैं’ दिखा भी न सकूँ |

बेरहम है मे’रे’ तक़दीर, प्रिया को लिया’ छीन 
ये वो’ किस्मत का’ लिखा है जो’ मिटा भी न सकूँ |

बाल सूरज हो’ गया अस्त है’ सूनी माँ’ की’ गोद 
आँख सूखी, न गिली  किन्तु रुला भी न सकूँ |

ख़ूनी चालाक था’ गायब किया’ सब औजारें 
साक्ष्य कोई नहीं,’ पापी को' फँसा भी न सकूँ |

मिला’ है प्यार मुझे मांगे’ बिना यार मे’रे 
वो’ है’ ‘काली’ मेरा पाथेय, लुटा भी न सकूँ |

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:17am

आदाब और शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी श्रीवास्तव जी 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:16am

आदाब और शुक्रिया आदरणीय महम्मद आरिफ साहिब 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:15am

आदाब और शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहिब 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:13am

शुक्रिया आदरणीय अफरोज सहर जी 

Comment by Mohammed Arif on September 19, 2017 at 9:22am
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब, अच्छा प्रयास । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2017 at 3:08pm
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
Comment by Afroz 'sahr' on September 17, 2017 at 2:23pm
आदरणीय काली प्रसाद जी आपकी ग़ज़ल में कई मिसरे बहर में नहीं हैं ! बेहतर होगा आप नज़र ए सानी करलें !सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2017 at 1:50pm

आदरणीय काली पद भाई , गज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है , हार्दिक बधाइयाँ । वाक्य विन्यास की कमज़ोरी गैर हिन्दी भाषी होने कारण हमेशा की तरह इस गज़ल मे भी है , कुछ समय और दीजिये इस गज़ल को आदरनीय ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 16, 2017 at 3:54pm

शुक्रिया आ शिज्जू  और आ निलेश भाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2017 at 2:00pm

आ. कालिपद मंडल सर आपकी ग़ज़ल और थोड़ी मेहनत और समय माँग रही है। मैं निलेश भाई से सहमत हूँ यदि ये रचना आयोजन में आती तो विस्तृत चर्चा हो जाती 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service