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ख़्वाब तूने कोई बुना होगा
तब तेरा रतजगा हुआ होगा
सर यक़ीनन मेरा झुकेगा जनाब
आपसे जब भी सामना होगा
मुद्दतों बाद मेरी याद आई
मुश्किलों से कहीं घिरा होगा
मुझको मेहनत लगी थी लिखने में
उसको एहसास इसका क्या होगा
शहर में होना आरज़ी है मगर
तज़्किरा मेरा बारहा होगा
आरज़ी – थोड़े समय के लिए, तज़्किरा – जिक्र
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
शहर में होना आरज़ी है मगर
तज़्किरा मेरा बारहा होगा
वाह आदरणीय वाह ... बहुत ही बेहतरीन अशआर हुए हैं। इस दिलकश ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दिल मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।
आ. शिज्जू भाई.
ख़ूब ग़ज़ल हुई है
बधाई
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