२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२ (अरकान सही क्रम में हैं या नहीं ये मुझे नहीं पता)
मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर
रुसवाई यानी हो भी तो रुसवा किए बग़ैर.
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रुख्सत किया है ज़ह’न से यादें लपेट कर,
तन्हा किया है आप ने तन्हा किए बग़ैर.
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झुकिए अना को छोड़ के गर इल्म चाहिए,
मिलता नहीं सवाब भी सजदा किए बग़ैर.
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जिस दर पे पूरी होतीं मुरादें तमाम-तर
हम वाँ से लौट आये तमन्ना किए बग़ैर.
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मुझ को न हो गुरूर मेरे नूर का कभी
रौशन ख़ुदाया रखना सितारा किए बग़ैर.
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देकर ज़ुबान लौटने की बँध न जाते “नूर”
रुख़्सत हुए जहान से वादा किए बग़ैर
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
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