For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५४

ग़ज़ल-  १२२२ १२२२ १२२२ १२२२२

मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन

 

मुनासिब है ज़रूरत सब ख़ुदा से ही रजा करना

कि है कुफ़्रे अक़ीदा हर किसी से भी दुआ करना

 

ग़मों के कोह के एवज़ मुहब्बत ही अदा करना

नहीं है आपके वश में किसी से यूँ वफ़ा करना

 

नई क्या बात है इसमें, शिकायत क्यों करे कोई

शग़ल है ख़ूबरूओं का गिला करना जफ़ा करना

 

अगर खुशियाँ नहीं ठहरीं तो ग़म भी जाएँगे इकदिन

ज़रा सी बात पे क्योंकर ख़ुदी को ग़मज़दा करना

 

उफुक़ ए कोह पे जाकर मुड़े है राह फ़िर नीचे

कि जितना डूबता जाए तू उतना हौसला करना

 

दिखाया है ख़ुदी ने कौन है खुदगर्ज़ अपनों में

नहीं फ़ितरत मगर मेरी किसी पे तब्सिरा करना

 

ये दुनिया है खड़ी अब तक तमन्ना के सुतूनों पर

बहुत ही सोचकर आंखों से ख़्वाबों को जुदा करना

 

अना को ख़ाक़ में रखकर ही है वहदानियत मुमकिन

बहुत मुश्किल है ये तौबा, ख़ुदी को ख़ुद रिहा करना

 

सुकूने ज़िंदगानी का तरीका कारगर है ये

कि क़ब्ले आमदे इल्लत अलामत की शिफ़ा करना

 

समझता हूँ तेरी नाज़िश मगर ऐ जाने जाँ समझो

अगर पूरा न कर पाओ तो फ़िर क्यों वायदा करना

 

मुक़म्मल कब हुई ग़र्क़ो फ़ना से आशिक़ी पहले

वफ़ा को है ज़रूरी इंतिहा की इब्तिदा करना

 

नहीं करने से दो इक बार फ़न तकमील होता है

अगर सीखा जो चाहे हो तो उसको बारहा करना

 

अगरचे काम दुनिया के हज़ारों हैं मगर सच है

कि कारे फ़र्द दो ही हैं कि कुछ भी सोचना, करना

 

फ़क़ीराना हिदायत है कि ग़ुस्सा ख़ुद पे लाज़िम है

कि दिलको कुछ शिकायत है तो ख़ुदसे ही गिला करना

 

अना में देखना है रूह को उरयाँ बरअक्से ख़ुद

तो मसनूई इज़ाफ़ा शख़्सियत में बिरहना करना

 

कि पछताओगे जल्दी में लिये हर फ़ैसले से तुम

तसल्ली से कभी भी दिल किसी से आशना करना

 

तलाशे मानी ए हक़ में लगे हैं राज़ अर्से से

कहीं मिल जाए तुमको तो उन्हें भी इत्तला करना

~राज़ नवादवी 

 

मुनासिब- उचित; कुफ़्र- अस्वीकृति, कृतघ्नता; अक़ीदा- धर्म, मत, श्रद्धा, विश्वास; रजा- आशा, आस; कोह- पहाड़; एवज़- बदले में, स्थानापन्न; शग़ल- धंधा, काम, जी बहलाने का का; ख़ूबरू- रूपवान, प्रियतमा; उफुक़- क्षितिज; तब्सिरा- आलोचना, समीक्षा; सतूना- स्तम्भ; अना – मैं; वहदानियत- अद्वैतवाद; तौबा- त्याग; इल्लत- त्रुटि या कमी, रोग, बीमारी, झंझट; अलामत- चिह्न, निशानी; शिफ़ा- रोगमुक्ति; नाज़िश – नाज़, हाव-भाव; ग़र्क़- डूबना, डूबा हुआ; फ़ना– मर जाना, मिट जाना, लुप्त या ग़ायब हो जाना, समाहित हो जाना; इंतिहा- पराकाष्ठा; इब्तिदा- प्रारम्भ; तकमील- पूर्ती, पूरा, समाप्त; बारहा- बहुधा, बार बार; कार- कार्य, उद्यम; फ़र्द- एक व्यक्ति, आदमी; लाज़िम- उपयुक्त, ज़रूरी, आवश्यक; उरयाँ- नग्न; बरअक्से ख़ुद- स्वयं के प्रत्युत, आमने सामने; मसनूई- कृत्रिम; इज़ाफ़ा- वृद्धि, बढ़ोत्तरी; बिरहना- नग्न; हक़- सत्य, सच, ईश्वर; इत्तला- सूचना 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on October 3, 2017 at 5:40pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आप का ह्रदय से आभार. 

Comment by Afroz 'sahr' on October 3, 2017 at 4:10pm
जनाब राज़ नवादवी साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है शेर दर शेर दाद कुबूल करें,,,,
Comment by नाथ सोनांचली on October 3, 2017 at 3:01pm
आद0 राज साहब सादर अभिवादन, बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद के साथ बधाई।
Comment by नाथ सोनांचली on October 3, 2017 at 3:01pm
आद0 राज साहब सादर अभिवादन, बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद के साथ बधाई।
Comment by Samar kabeer on October 3, 2017 at 2:41pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by राज़ नवादवी on October 3, 2017 at 12:40pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब, आदाब अर्ज़ है. आपकी बात सर आँखों पर. आपकी दाद ओ तहसीन का दिल से शुक्रिया. मैंने सहल लफ़्ज़ों में भी लिखा है मगर अभी साया नहीं किया है. एक तरतीब में करूँगा, यह पहले की लिखी ग़ज़ल है और हालिया गज़लें अपनी नौइयत ए बयाँ में ज़्यादा सहल और जुदा हैं. यह सब ज़ुबान ओ कलामे फ़न को सीखने के सिलसिले का एक निसाबी सफ़र है जिससे मैं गुज़र रहा हूँ. मगर मेरा यह कहना है कि हमें किसी चीज़ का मज़ा लेने के लिए कुछ तो तय्यारियाँ करनी होती हैं, हम जब पहाड़ों के सैर पे जाते हैं तो मुश्किल रास्तों के सफ़र का भी लुत्फ़ उठाते हैं, हम रास्तों को सीधा और सपाट बना देने का इरादा नहीं करते. भाई, सरल शब्दों की हद क्या है? हम शायरी का जौक रखने वालों पर क्या ये बात आयद नहीं है कि हम अपनी ज़ुबान के मेयार को भी ऊँचा करें? आप सोचिए, अगर हम इसी तरह शायरी से अल्फाज़ को कतरने की पैरवी करते रहे तो अदब की रंगीनी का क्या होगा? शायरी ख्याल और अलफ़ाज़ दोनों की एक ख़ूबसूरत आमेज़िश है, जिसे अरूज एक कैनवास देता है. लफ्ज़ अक्स हैं ख्यालों के और शायर एक अक्कास. लुगत एक तरकश है, अलफ़ाज़ तीर, शायर तीरंदाज़, और मजमून उसका निशाना है. सुखनवरी शायर का फन है और अरूज इस फन को साधने का क़ायदा.  लुगत से मतलब है जुबां जो या तो हाफिज़े में है या किसी खारिज़ी वसीले की शक्ल में. खैर, ये कुछ मेरे ज़ाती ख्यालात थे जो मैंने आपसे साझा किया क्योकि मुझे ऐसी तरगीब हुई. मगर फिर भी आपकी बातें और नेक मंशा मेरे ज़हन में हैं जिसपे अमल करने की मेरी पूरी कोशिश होगी. सादर 

Comment by Mohammed Arif on October 3, 2017 at 11:58am
आदरणीय राज़ नवादवी आदाब, इस ग़ज़ल की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । हर शे'र माक़ूल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें । आपने हमेशा की तरह इस ग़ज़ल में भी क्लिष्ट शब्दों का भरपूर इस्तेमाल किया और साथ ही ढेरों शब्दार्थ भी पेश कर दिए । अरे भाई, क्या सरल-सरस भाषा में भी अपनी बात कहने में क्या आपको तक़लीफ होती है । ग़ज़ल वह होनी चाहिए जिसमें मुझ जैसे पाठक को शब्दकोष देखने की ज़रूरत ही न पड़े । क्या मैं पहले शब्दार्थ याद करूँ या आपकी दी गई ग़ज़ल पढ़ूँ और उसका लुत्फ उठाऊँ ? शायद आप मेरी बात पर ग़ौर करेंगे । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service