For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मिलते कहाँ हैं लोग भी होशो हवास में

221 2121 1221 212

ठहरी मिली है ज़िंदगी उनके गिलास में ।
मिलते कहाँ हैं लोग भी होशो हवास में ।।

देकर तमाम टैक्स नदारद है नौकरी ।
अमला लगा रखा है उन्होंने विकास में ।।

सरकार सियासत में निकम्मी कही गई ।
रहते गरीब लोग बहुत भूँख प्यास में ।।

बेकारियों के दौर गुजरा हूँ इस कदर ।
घोड़ा ही ढूढता रहा ताउम्र घास में ।।

यूँ ही तमाम कर लगे हैं जिंदगी पे आज ।
रहना हुआ मुहाल है अपने निवास में ।।

कितने नकाब डाल के मिलने लगे हैं लोग ।
चेहरा नहीं पढ़ा गया अब तक उजास में ।।

दौलत की ख़ासियत को जरा देखिए हुजूर ।
उलझे हजार हुस्न यहां खास खास में ।।

खुशबू सी आ रही है हवाओं से बेहिसाब ।
शायद बहार होगी कहीं आस पास में ।।

जब से खुला है मैकदा उनकी गली के पास ।
निकले शरीफ़ लोग बहुत बे लिबास में ।।

कड़वी ज़ुबान है तो उसे भी सलाम कर ।
कीड़ें पड़े तमाम हैं अक्सर मिठास में ।।

कैसा हवस का दौर है कैसे पढ़े हैं लोग ।
होते हैं फेल इश्क़ की पहली कलास में ।।

यूँ ही मिली नज़र थी इरादा भी नेक था ।
मुज़रिम बना गया है कोई फिर कयास में ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on October 6, 2017 at 8:40pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब , बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
नोट:- कितना अच्छा हो अगर आप जैसे निष्णाण ग़ज़लगो साहित्य अन्य विधाओं पर अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी टिप्पणियों से पोषित करें ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 6, 2017 at 12:35pm
आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 6, 2017 at 12:33pm
आ0 अफरोज सहर साहब शुक्रिया मैं बे लिबास शब्द हटा देता हूँ ।
Comment by Afroz 'sahr' on October 5, 2017 at 3:09pm
आदरणीय नवीन जी आदाब आपका मिसरा है ,,निकले शरीफ़ लोग बहुत बे लिबास में,,, इस मिसरे के ,,ज़रब,, पर ,,बे लिबास में,,, यहीं पर गौ़र करने की ज़रूरत है। कयूँ की ,,बे लिबास,, लफ़्ज़ कहीं भी किसी भी संदर्भ में पयोग किया जा सकता है। परंतु ,,बे लिबास,, के साथ जब ,,में,,,को उच्चारित किया जाएगा तो एक बिल्कुल ही नये शब्द की उत्पत्ती हो रही है। ,,,लिबास में,,,, लफ्ज़ तो व्यवहारिक है किंतू ,,,बे लिबास में,,ये क्या बात हुई ,,बे लिबास,,, के स्थान पर एक उचित और राइज़ लफ़्ज़ ,,,,बरहना,,, पूर्व से ही प्रयोग में है इसलिए ,,,,बे लिबास में,,,, कहना ना तो व्यवहारिक है ना अरूज़ सम्मत ।
Comment by Samar kabeer on October 5, 2017 at 2:46pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
सातवें शैर में क़ाफ़िया "ख़ास"उर्दू के लिहाज़ से ग़लत है ।
नवें शैर पर अफ़रोज़ साहिब से सहमत हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 5, 2017 at 2:33pm
'ज़ईफ़' यानी कमज़ोर ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 5, 2017 at 10:17am
भाई सुरेंद्र नाथ कुश क्षत्रप जी आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 5, 2017 at 10:15am
आ0 अफरोज सहर साहब यह जईफ क्या है थोड़ा समझाइये
Comment by नाथ सोनांचली on October 5, 2017 at 5:06am
जब से खुला है मैकदा उनकी गली के पास ।
निकले शरीफ़ लोग बहुत बे लिबास में ।।

आद0 नवीन जी सादर अभिवादन, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शेर मुबारकबाद कबूल करें।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 5, 2017 at 12:45am
आ0 राज नवादवी साहब शुक्रिया ,। बेकरियों के दौर से गुजरा हूँ इस कदर । यहां टाइपिंग मिस्टेक म् "से"छूट गया है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service