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आदरणीया प्राची जी,
खूबसूरत गीत प्रस्तुति के लिए बधाईयाँ.
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
सँभल.. ही कर लेती हूँ
कुछ शब्द सामान्य वार्तालाप से अनजाने ही शैली में इस कदर शुमार हो चुके होते हैं कि उनके बारे में सोच ही नही सकते कि इनकी वर्तनी गलत भी हो सकती है
आ० प्राची जी, इस गीति-प्रतीति पर पुनः आता हूँ. किंतु इस अद्भुत संप्रेषणीयता के लिए आप पहले हार्दिक बधाई स्वीकारें
सादर
आदरणीय समर साहब ई गीतवा त हिंदी में न है, आप तनिका ई भी बुझिये !
हिन्दी में ’मुआफ़ियों’ कहि दें आ फेर देखें तमाशा ! लुल्ले पर हुल्ले मच जाएगा.. आ ’सम्हल’ पूरा देसज का चाशनी में लभेराया लफ्ज है.. आ ऊ एकदम्मे लफ़्ज़ नहीं होता.. :-))))))
जय हो.. . हा हा हा............
आदरणीय, हँसी-खुशी में हम समवेत सीखते चलें..
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