For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक़्त के संग कुछ बदल // डॉ० प्राची

तारतम्यों के भँवर में
क्या उम्मीदें कर रहा है?
बावरे अब तो सम्हल जा
वक्त के संग कुछ बदल...

क्यों ठगा सा तू खड़ा है भावनाओं को लिये
बाँचता है क्यों भला वो अश्रु जो तूने पिये,
रख अगर उम्मीद रखनी है स्वयं से खूब रख
तृप्ति की जो बूँद निस्सृत हो हृदय से खूब चख,

आज के परिपेक्ष्य में अपनत्व
की संभावना को,
खोजना क्या है उचित?
रे मूर्ख! जाएगा फिसल...

सिर्फ बातों के लिए सबने सभी बातें कहीं
अर्थ उनमे खोजता क्यों अब तलक अटका वहीं,
सिर्फ सुविधा के तहत जब आपसी व्यवहार हों
तब क्षणिक अनुबंध भी आख़िर किसे स्वीकार हों,

तितलियों के आवरण में
डंक बर्रों के छुपाती,
फितरतें हैं आदमी की
तू नहीं इन पर मचल...

जब विलगता बाँह थामे इस तरह संयुक्त हो
इक सिरा आबद्ध पर दूजा सिरा उन्मुक्त हो,
क्या नहीं होगा सही तब बन्धनों को खोलना
मिसरियों सा झूठ झुठला सत्य खुद से बोलना,

सिसकियों के सिलसिले सब
भूल कर, फिर माफियों के,
गर्म से एहसास में तू
किन्तु मत जाना पिघल...

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2017 at 9:27pm
आदरणीया प्राची जी इस खूबसूरत गीत के लिए हार्दिक बधाई। दिवाली की भी हार्दिक शुभकामनाये सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 9:44am
आ. ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई.
Comment by Ajay Tiwari on October 19, 2017 at 8:50am

आदरणीया प्राची जी,

खूबसूरत गीत प्रस्तुति के लिए बधाईयाँ.

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर  

Comment by Samar kabeer on October 18, 2017 at 5:24pm
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,हा हा हा..बूझ लिया जी, परन्तु उर्दू शब्दवा का समावेश भी है ई गीतवा म,तनिक ई भी समझाई दो ई का मिली जुली सरकार है का ?

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 18, 2017 at 5:14pm

सँभल.. ही कर लेती हूँ 

कुछ शब्द सामान्य वार्तालाप से अनजाने ही शैली में इस कदर शुमार हो चुके होते हैं कि उनके बारे में सोच ही नही सकते कि इनकी वर्तनी गलत भी हो सकती है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 18, 2017 at 4:08pm

आ० प्राची जी, इस गीति-प्रतीति पर पुनः आता हूँ. किंतु इस अद्भुत संप्रेषणीयता के लिए आप पहले हार्दिक बधाई स्वीकारें 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 18, 2017 at 4:03pm

आदरणीय समर साहब ई गीतवा त हिंदी में न है, आप तनिका ई भी बुझिये !

हिन्दी में ’मुआफ़ियों’ कहि दें आ फेर देखें तमाशा ! लुल्ले पर हुल्ले मच जाएगा..  आ ’सम्हल’ पूरा देसज का चाशनी में लभेराया लफ्ज है.. आ ऊ एकदम्मे लफ़्ज़ नहीं होता.. :-)))))) 

जय हो.. .  हा हा हा............ 

आदरणीय, हँसी-खुशी में हम समवेत सीखते चलें..

Comment by Samar kabeer on October 18, 2017 at 2:49pm
मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह साहिबा आदाब,बहुत सुंदर गीत हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
तीसरी पंक्ति में 'सम्हल' या "सँभल",
इसी तरह आख़री पंक्तियों में 'माफियों' या "मुआफ़ियों"?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटीसूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात । क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।मुफलिस…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service