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"आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी
इस गीत की मात्रा 8x8 और 8x8x8 के खण्डों में है.. आप पूरे वाक्यों की मात्रा देखिये पूर्ण विराम आने तक , सिर्फ अल्पविराम तक नहीं...
आपको मात्रा 8 या 16 या 24 मिलेगी एक निश्चित आवृति में ..
इन रातों जैसी स्याही काली....................
2 2 2 2 2 2 2 2 2 ...............................18
सिर्फ़ ज़रूरी बात यही है-
तेरी पलकों में जुगनू बन
स्वप्न पला क्या ?
जटा-जटा बन छितर-बितर ये बाल धूल से मैले-मैले
नन्हे हाथों से पीछे कर
बीन-बान कर दीप, माँग कर इधर-उधर से थोड़ी उतरन
भर लाई घर कितने थैले...
2 2 2 2 22 22 ........................16 आदरणीया प्राची जी यहाँ मात्राओं के बारे में अस्मंजस में हूँ ....कृपया मार्गदर्शन करने का कष्ट करें सादर
झाड़खंड में एक बालिका मर गयी कहते भात भात
कहीं कोई सिसकी ठहरी न
लीपा पोती करने में सब और भला करते ही क्या?
दीन-हीन की रात अँधेरी, पूछ रहे हम, दीप जला क्या ? स्वप्न पला क्या ? बहुत मार्मिक और सार्थक गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई बहन डॉ. प्राची जी | दीपोत्सव पर्व की हार्दिक बधाई !
आ. प्राची जी, दिवाली पर मैं ऐसी ही रचना की तलाश कर रहा था. इस शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
दीपावली के त्योहार पर एक प्लास्टिक बीनने वाली लड़की केा माध्यम बनाकर उस गरीब वर्ग का दर्द उकेरने के लिए हार्दिक बधाई। बहुत हृदयग्राही रचना बनी है।
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